नेटफ्लिक्स पर आज रिलीज हुई मिसेज सीरियल किलर एक ऐसी फिल्म है जिसके लिए ये गीत बिल्कुल सही बैठता है:
हम थे वो थी, वो थी हम थे,
हम थे वो थी और समा रंगीन समझ गए ना,
जाते थे जापान पहुँच गए चीन समझ गए ना,
खोया मैं कैसे उसकी बातों में,
कहता हूँ दम तो लेने दो आहाहा,
खोई वो कैसे मेरी बातों में,
कहता हूँ दम तो लेने दो आहाहा,
क्या क्या कह डाला, आँखों आँखों में,
कहता हूँ दम तो लेने दो,
हम थे वो थी और समा रंगीन समझ गए ना,
जाते थे जापान पहुँच गए चीन समझ गए ना,
छूटे बुलबुले दो नैना फड़के,
उसने जब देखा मुड़-मुड़के वाह वाह वाह,
घबराहट में फिर अपना अपना हाथ,
उसने खैंचा मैंने खैंचा आहाहा,
हम थे वो थी और समा रंगीन समझ गए ना,
जाते थे जापान पहुँच गए चीन समझ गए ना,
मैं अमूमन हर फिल्म या सीरीज के अच्छे और बुरे सेगमेंट लिखता हूँ लेकिन इसके लिए मैं ऐसा नहीं करूंगा, क्योंकि इसमें कुछ ही अच्छा था, बाकी तो गुणगोबर था और मैं उसके बारे में पहले परिच्छेद के बाद बात करूंगा:
इस फिल्म को लेकर मैं इसलिए भी उत्साहित था क्योंकि इसमें सरदार खान थे और हमें लगा कि वो फैमिली मैन बनेंगे लेकिन वो कुछ अलग ही बन बैठे। ये उनके स्तर कि स्क्रिप्ट नहीं थी लेकिन इस कहानी में उन्होंने कई लेयर्स में काम किया जिसकी उम्मीद उनके जैसे मंझे हुए एक्टर से की जाती है। मोहित रैना ने भी अच्छा काम किया जिसकी उनसे उम्मीद थी और डेब्यू कर रहीं ज़ेन खान ने भी ये दिखाया कि अगर उन्हें सही मौके मिलें तो वो अच्छा काम कर सकती हैं।
जैक्वलीन फर्नॅंडेज़ ने कोशिश की लेकिन वो कोई खास धमाल नहीं कर सकीं। एक इंसान अपने गेटअप को बदलकर जाता है और दूसरे ही पल वो हंटर से हंटेड बन जाता है। उसके बाद शोले के जमाने से देख रहे मिट्टी वाले स्टाइल में वो धमाल नहीं था। कुंदर साहब ने सोचा कि इस कहानी को सस्पेंस और थ्रिलर में दिखाया जाए लेकिन इसमें संजय लीला भंसाली वाले रंगों से प्यार करने वाला रूप नजर आ रहा था।
एकदम से हरा रंग, फिर लाल फिर ना जाने क्या? रंगों से ऐसा प्यार कि एक पल के लिए लगा जैसे शादी में डीजे वाले डांस फ्लोर का रंग नहीं बदलते कुछ वैसा हो रहा है। इन सभी किरदारों को बनाने में भी काफी उदासीनता रही। एक ही शॉट को दो बार शूट किया सिर्फ कपड़े बदलकर, जिसमें शुरुआत में डेड बॉडी मिलने का सीन और फिर एक और डेड बॉडी मिलने वाला सीन शामिल है। इसमें कमाल बात ये थी कि मोहित रैना हेलमेट नहीं लगाए थे क्योंकि वो हीरो हैं, उन्हें नियम का क्या करना है? वो तो अपनी जिंदगी में अमर होने की भविष्यवाणी लिखवा के आए हैं जबकि उनके पीछे बैठा उनका साथी हेलमेट लगाए हुए है।
पाँच लाशें मिलीं लेकिन उनके बारे में कोई जानकारी नहीं दिखाई गई। जब गमलों के नीचे से खुदाई कर के बॉडी निकाली तो कुछ डेली ऑर्टिस्टों को परिवार के तौर पर बिठाकर रुदौली वाला सीन कर दिया गया। भाई, दिमाग नाम की एक चीज होती है उसका इस्तेमाल कर लेते तो शायद इतनी परेशानी नहीं आती और अगर आप सोच रहे हैं कि मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ तो आगे पढ़िए पता चल जाएगा।
जैक्वलीन जब कुत्ते को ब्रेड देती हैं उस समय उनके पीछे एक सीसीटीवी कैमरा साफ दिखता है लेकिन उसको एविडेंस के तौर पर इस्तेमाल करने की शिरीष ने नहीं सोची। आखिरकार सोचते भी कैसे, जोकर बनाकर खुद की फिल्म को मेरा नाम जोकर के लेवल की समझने वाले शिरीष को ये बेकार लगा होगा। चलो एक कैमरा है जैक्वलीन के पीछे और एक उनके आगे, और ऑडिएंस तो अंधी है उसे तो कुछ दिखेगा नहीं, क्यों ठीक हैं ना?
आप सोचिए कि एक एक्ट्रेस को एकदम से पत्नी से डॉक्टर बनने में वक्त नहीं लगा और एक ब्लैक बेल्ट वाली के पास स्पाइडरमैन वाली स्किल्स आ गई, नहीं? ये कमाल या मूर्खता सिर्फ शिरीष ही कर सकते हैं क्योंकि उन्हें लगा होगा कि ये तो बच्चों कि फिल्म है वो देखेंगे कि एक लड़की जो दो मिनट पहले बेड पर मौत के हवाले होने वाली थी एकदम से स्पाइडरवोमेन बन गई और इसपर वो तालियाँ बजाएंगे, हैं ना शिरीष?
इसपर कमाल ये कि मनोज जी जैसे एक मंझे हुए एक्टर को बेवजह जुल्फें देना, और फिर उसे ओल्ड माइंडसेट का दिखाना, सीटी बजाना कहाँ से सही है? अरे भाई और कुछ नहीं कर सकते तो कम से कम किरदार को कैरीकेचरिश तो ना करो। उससे भी कमाल ये कि जब मनोज जी खान साहिबा के बॉयफ्रेंड को बाहर लाकर कुर्सी पर बिठाते हैं तो वो बिहार में प्रचलित गाली देते हैं, वाह, कुछ और बाकी था तो मराठी, गुजराती भी ड़ाल देते।
एक प्लेट फाफडा और दो वड़ापाव भी दिखा देते तो क्या जाता? शुक्र है अंग्रेजी स्टाइल का बॉयफ्रेंड दिखाकर इन्होने अंग्रेजी पीने वाले ब्रांड नहीं दिखाए, लेकिन मुमकिन है कि अंग्रेजी अंदर गयी होगी तो ये हिंदी फिल्म का आइडिया कुंदर साहब के दिमाग में आया होगा। उससे भी अच्छा ये है कि इन्होंने कुछ अंग्रेजी दिखाकर सेक्स नहीं दिखाया, नहीं तो क्या मालूम ये तीस मार खां ये भी स्क्रिप्ट में लिख देते कि कुछ भी दिखा दो, मैं हूँ ना।
मुझे हँसी आई जब परफ्यूम से इन्होंने एक सेक्शन को गेस किया और फिर अंत में और ज्यादा जब बेवजह स्टोरी सुनाई जा रही थी और क्लाइमैक्स को खींचा जा रहा था। एक पल के लिए उस सीन में मुझे लगा कि मोहित रैना कि जगह शिरीष हैं जिन्होंने कहा कि मनोज सर इस फिल्म में सस्पेंस है और फिर जब नरेट करने लगे तो मनोज जी यही कह रहे थे कि भाई तूने सस्पेंस बोला था लेकिन सस्पेंस को छोड़कर इसमें सबकुछ था। एक बड़ा पुराना जोक याद आया, क्योंकि नया तो शिरीष ने मिसेज सीरियल किलर के रूप में बना दिया है।
वो पुराना जोक ये था कि एक लड़का स्टेज पर एक हॉरर स्टोरी सुनाने जाता है लेकिन सब हँस रहे होते हैं। हो सकता है जोक समझ ना आया हो तो जसपाल भट्टी जी का ये एपिसोड देख लेना शिरीष क्योंकि ये तुम्हारी उस दो घंटे कि फिल्म से अच्छा था।
लेखक: अमित शुक्ला (इंस्टाग्राम पर भी इसी यूजरनेम के साथ)
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