Saturday, 11 April 2020

Bamfaad: इश्क़, जुनून और ज़ज़्बात की एक बेहतरीन कहानी



अगर आपमें हुनर है तो डेब्यू चाहे 70 मिमी के स्क्रीन पर हो या फिर आजकल के दौर के ओटीटी प्लेटफार्म पर, आप अपनी छाप छोड़ने में कामयाब होंगे। आजकल का वो दौर जहाँ इंसान अपनी सहूलियत के हिसाब से आपके काम को देख सकता है आपके लिए एक चुनौती भी लेकर आता है।

लोग जिस मूड में आपके काम को देखते हैं उनकी राय उसी हिसाब से ही बन जाती है और वैसे भी आजकल हर दूसरा इंसान ज्ञानी है। टेक्नोलॉजी के विकास ने हमारे दिमाग का विकास किया या नहीं ये एक सवाल हो सकता है लेकिन उसने हमारे कलाकारों के पास अपने काम को दिखाने के मौके बढ़ा दिए हैं और इसमें कोई सवाल नहीं है।



इस वक्त जब देश कोरोना वायरस के प्रभाव को कम करने और खुद को सुरक्षित रखने के लिए घर में है तब एक ओटीटी प्लेटफार्म जी5 ने एक फिल्म रिलीज़ की जिसका नाम बमफाड़ है। टाइटल के मुताबिक ही इसके दोनों डेब्यू एक्टर्स ने काफी अच्छा काम किया लेकिन हर कहानी में कहीं कुछ कम, कुछ ज्यादा जरूर होता है और ऐसा होना भी चाहिए। परफेक्शन किसी में नहीं है और कमियों के साथ खुद को बेहतर करने का प्रयास ही जीवन और हर काम का आधार है।

अब इससे पहले कि आपको मेरा ये आर्टिकल किसी बाबा के प्रवचन की फीलिंग देने लगे, आइए बात करते हैं उन पलों की जो इस सीरीज़ में अच्छे और बुरे थे:

बुरे

कहानी में उतार चढ़ाव

Binge Watch - Your destination for all the OTT content out there ...

उतार चढ़ाव हर कहानी का सार हैं क्योंकि सीधी रेखा तो अंत की पुकार है लेकिन इस फिल्म की कहानी में कई चीज़ें बेहद अटपटी थीं। एक ये कि जो इंसान डीआईजी की नजरों में हो और जिसके बारे में सबको खबर हो उसे इस तरह से खुले में कैसे घूमने को मिल सकता है। ये लचर कानून को दर्शाता है।

एक्टिंग

इसके अलावा कुछ सीन में विजय वर्मा के किरदार में भी वो ग्रिप नहीं दिखी जिसकी उम्मीद थी। लखनऊ पुलिस के इंस्पेक्टर का किरदार कर रहे अभिषेक त्रिपाठी ने भी अपने काम में एक कमजोर नजरिया दिखाया। वहीं विजय के साथ रहने वाले दो लोगों में से सिर्फ सूफी को कुछ स्क्रीन टाइम मिला जबकि उनके साथ रहे दूसरे किरदार के पास करने को कुछ खास नहीं था। हाल फिलहाल में विजय ने एक इंटरव्यू में कहा था कि लोग काम को अपने तरीके से देखते हैं और ये बात मैंने पहले ही कह दी है लेकिन किरदार में कमांड भी दिखना चाहिए जो बिल्कुल नहीं था।

अब जब हमने पड़ोस वाली आंटियों की तरह किसी चीज की बुराई कर ली है तो आइए इस आर्टिकल के अगले हिस्से में चलते हैं जिसका अंत पड़ोसियों के फेमस डायलॉग से होगा,'छोड़ो, जाने दो, हमें क्या।' आइए इस फिल्म की अच्छाइयों पर भी एक नजर ड़ालते हैं:

अच्छे

डेब्यू में इम्पैक्ट

Bamfaad review: A mildly explosive love affair

डेब्यू का दौर ऐसा होता है जो काफी नर्वसनेस से भरा होता है। भले ही शालिनी पांडे अन्य भाषाओं में काम कर चुकी हैं और हिंदी में उनकी फिल्म आनेवाली है लेकिन किसी भी काम को करने में खासकर तब जब वो आपको इंट्रोड्यूस कर रहा हो काफी चुनौतीपूर्ण होता है। इस प्रेशर को शालिनी पांडे और आदित्य रावल ने काफी अच्छे से मैनेज किया और अपने काम से इम्पैक्ट छोड़ा।

गानों का सही इस्तेमाल

Bamfaad trailer: Paresh Rawal's son Aditya and Shalini Pandey make ...

1977 में आई भीमसेन खुराना जी की फिल्म 'घरौंदा' में गुलज़ार साहब ने कुछ लिखा था जो यहाँ कहना काफी जरूरी है:

"उस रात नहीं फिर घर जाता, वो चांद यहीं सो जाता है,
जब तारे ज़मीं पर चलते हैं, आकाश ज़मीं हो जाता है।"

- गुलज़ार

इस फिल्म के गीतों में कुछ ऐसा ही नशा है और वो एकदम सही जगह पर इस्तेमाल हुए हैं। कहानी को दिखाने के लिए और किरदारों के हालात को दर्शाने के लिए अल्फ़ाज़ एकदम सटीक हैं। इसके लिए राज शेखर के लिरिक्स तथा विशाल मिश्रा के म्यूज़िक की सराहना की जानी चाहिए। अगर गायक सुखविंदर जी हों तो आप सिर्फ अच्छा ही सुनेंगे इसमें कोई दोराय नहीं है।

एक्टिंग


अब एक्टिंग में दो लोगों के बारे में मैं अच्छे सैगमेंट में बात कर चुका हूँ लेकिन यहाँ मैं विजय वर्मा की बात करना चाहूंगा। भले ही उनके काम में कमी दिखी लेकिन एक नजरिया ये भी है कि वो एक ऐसा किरदार रखना चाहते थे जो काफी बातें इशारों में कहे और यही वजह है कि मैं कुछ हद तक उनके काम को इतना बुरा भी नहीं कह सकता। जतिन सरना के काम में भी धमाल था और वो अपने किरदार को बखूबी निभा रहे थे और यही बात सना अमीन शेख के बारे में भी कही जा सकती है। विजय कुमार जी ने भी पिता के किरदार में धमाल किया है।

सिनेमाटोग्राफी


इस सीरीज़ में शहर और उसके काम के साथ साथ उसकी खूबसूरती को कैद करने में जिस तरह से टीम को सफलता मिली है उसके लिए कैमरा, जिमी जिब और स्टेडीकैम टीम बधाई की पात्र है। उन्होंने शहर की खूबसूरती को काफी अच्छे से दिखाया है जो काफी अच्छी बात है।

जिस्म और सेक्स की नुमाइश नहीं



आजकल जिस तरह से हर वेब सीरीज और ऑनलाइन फिल्म हो या फिर सिर्फ फिल्म ही हो उसमें जिस्म और सेक्स की नुमाइश होती है उससे आप इस बात को समझ सकते हैं कि उनका ध्यान कहानी पर कम और स्टीमी सीन दिखाकर लोगों को अपनी सीरीज की तरफ आकर्षित करना होता है।

उससे उलट इस फिल्म के दौरान आपको ऐसे पल नहीं मिलेंगे जहाँ आपको ये लगे कि ये स्टीमी सीन किए गए या उसका प्रयास हुआ। ये कहानी काफी अच्छी तरह से दिखाई गई और बेवजह के सीन ना करके डायरेक्टर, राइटर और टीम ने ये दिखाया कि बिना बेवजह के कामुक सीन के भी फिल्म अच्छी हो सकती है।

पैट्रिआर्किअल सोच का चित्रण

Vijay Varma (@MrVijayVarma) | Twitter

एक इंसान किसी लड़की का शोषण करता है और वो उसे अपनी जागीर समझने लगता है, क्या ये सही है? ये अपने आप में पैट्रिआर्किअल सोच की निशानी है और फिर एक लड़के का एकतरफा इश्क जिसमें वो वालिया को अपना मान बैठा है जबकि लड़की ना तो उससे इकरार करती है और ना ही इज़हार?

आप ये कह सकते हैं कि हर गली मोहल्ले में ऐसे आशिक हैं तो यही कहानी में दिखाया है लेकिन हर गलत चीज को सोच से ही बदला जा सकता है। अगर पुरुष प्रधान सोच और समाज हमारे अंदर घर कर गया है तो इसे बदलना भी तो जरूरी है।

वो लड़की कोई गुड़िया नहीं है कि उसे कोई भी इस्तेमाल कर ले या फिर कोई एकतरफा प्यार करके किसी को अपनी जागीर मानने लगे। ये सोच हर उस इंसान की है जो गलत सबक के साथ बड़ा हुआ है और ये किसी एक देश तक सीमित नहीं है।

कोरोनावायरस ने उतने लोगों को नहीं मारा है जितना लोगों की ऐसी सोच ने लड़कियों को मारा है या शर्मशार होने पर मजबूर किया है। इसमें चाहे उनकी गलती हो या नहीं इससे फर्क नहीं पड़ता पर ये सोच बदलनी चाहिए और ये बदलाव मानसिकता का है। इसका चित्रण काफी अच्छा था क्योंकि कहानी ऐसी सोच वाले लोगों की थी।

अब ये सोच बदल रही है लेकिन अब भी लोगों को (खासकर लड़कियों को) आज भी ऐसी सोसाइटी का सामना करना पड़ता है। सोच बदलने की एक बेहद अहम जरूरत है और जब वो बदलेगी तो सब बदलेगा।

आप मुझे अपनी राय कमेंट्स में जरूर बताएं।

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