Tuesday 14 April 2020

The Raikar Case: कपट, कत्ल और कूटनीति को दिखाने की एक नाकाम कोशिश



एक कहानी को बनाने के लिए उसमें मिलाइए थोड़ा था सस्पेंस, थोड़ा बैकग्राउंड म्यूज़िक, बेवजह के किसिंग और सेक्स सीन क्योंकि आपको मालूम है कि आप कहानी को बेकार कर देंगे और फिर इसे सात सीटियों तक पकने दें जिसमें हर सीटी के बाद कोई अलग आदमी देखने जाए। इसके बाद वक्त से पहले ही कहानी को दिखा दें और फिर उसे थाली में परोस कर सबको पकने का मौका दें।

इस कहानी को गार्निश करने के लिए कुछ अच्छे एक्टर लें जिनके हुनर के दम पर आप इस कहानी को सात सीटियों तक चला सकें और जब आपको लगे कि आप कहानी का गुड़ गोबर कर चुके हैं तो उसमें एक गे किरदार को ड़ाल दें और लीजिए हो गई लोगों को दिखाने के लिए एक सीरीज़ तैयार। अब इसे किसी प्लेटफार्म के जरिए सर्व करें और उन्हें भी इसमें भागीदार बनाएं। अगर आपको कहानी में नमक की कमी लगे तो बेवजह का किडनैप दिखाएं और फिर चार साल पहले की रेसिपी को ले आएं।

The Raikar Case' review: Web series has plenty of family drama but ...

जी नहीं, मैं किसी खाने की डिश के बारे में नहीं बता रहा था और ना ही किसी नामी शेफ की रेसिपी या स्क्रिप्ट, बल्कि आपको ये बता रहा था कि किस तरह से एक सीरीज जिसमें काफी संभावनाएं थीं और जो बेहद अच्छी हो सकती थी उसे कैसे एक बेहतरीन डायरेक्टर और उनकी अति उत्साही कास्ट ने तबाह कर दिया। जब इस सीरीज का ट्रेलर आया था तो मैं काफी उत्साहित था और उसकी वजह थे अतुल कुलकर्णी जी और पारुल गुलाटी। इन दोनों से उम्मीद थी लेकिन जहाँ अतुल जी ने संभाला वहीँ पारुल तो निराश ही कर बैठीं।

इस सीरीज से बेहतर तो इसका ट्रेलर था और अगर आपने सीरीज देख ली है तो आपको चख दे इंडिया का वो आखिरी डायलॉग याद आ रहा होगा कि ये 70 मिनट तुमसे कोई नहीं छीन सकता और ये लौटकर वापस नहीं आनेवाले हैं। आज पहली बार ऐसा लग रहा है कि काश टाइम ट्रैवेल कर लेता तो मैं वापस जाकर इस सीरीज को ना देखता।


ऐसा सोचते ही मुझे शोले फिल्म याद आ जाती है और उसमें संजीव जी और उनके घर आए जेलर के बीच हुई बातचीत का वो डायलॉग याद आ जाता है जो कुछ इस तरह था:

जेलर: ठाकुर साहब, खोटा सिक्का तो दोनों तरफ से खोटा होता है,

संजीव कुमार जी: सिक्के और इंसान में शायद यही फर्क है।

आप शायद फिल्मों को ऐसे नहीं देखते होंगे लेकिन मेरे लिए तो हर कहानी एक अलग अनुभव है। हर फिल्म/सीरीज का फ्रेम एक ऐसा अनुभव जिसके बारे में बात की जानी चाहिए और इसलिए मैं फिर शोले की मौसी की तरह कहता हूँ,'चाहे सौ बुराइयाँ हो तुम्हारे दोस्त में लेकिन तुम्हारे मुँह से उसके लिए सिर्फ तारीफें ही निकलती हैं।'


इन्हीं बातों के साथ आइए उन पलों के बारे में बात करते हैं जो शो में अच्छे और बुरे थे:

अच्छे

अतुल कुलकर्णी

रायकर केस की समीक्षा: यह एक जटिल ...

वो कहते हैं ना कि डूबते हुए को तिनके का सहारा भी काफी होता है और अतुल जी इस सीरीज में वही तिनका साबित हुए हैं। एक तरफ ये पूरी कहानी और डूबते हुए परिवार को संभालने की कोशिश करते हैं तो वहीं निर्भीक भी हैं। पुलिस के सामने टूट जाने वाले अतुल जी ने अपने प्रिय दोस्त को जिस तरह से उसके केबिन में जाकर फटकार लगाई वो ये बताने के लिए काफी है कि ये किस स्तर के अदाकार हैं। इस पूरी कहानी में इनका काम ही सबकुछ था जो सबसे महत्वपूर्ण था।


साथी कलाकार

ये जगह मैंने खाली छोड़ी है क्योंकि साथी कलाकारों को कहीं मौका ही नहीं दिया गया। एक पूरे पोस्टर में अगर फैमिली फ्रेम्ड भी थी तो कुछ और भी तो कर सकते थे, पर नहीं कंपनी को तो ये दिखाना है कि वो कितने अच्छे हैं और बाकी सब तो बेकार हैं। इसमें ना सावंत का नाम था ना ही कुछ और और फिर आप कहो कि हमने साथी कलाकारों को जगह दी, तो मेरा सवाल है, कहाँ?

शहर का चित्रण

अब इसमें मैं आपको क्या बताऊँ कि ये क्या है? पूरे शहर में सिर्फ उनकी प्लांटेशन या फिर मौत का सीक्वेंस ही है जिसके बारे में जानना चाहिए। शहर का अजीबोगरीब चित्रण एक अजीब सी बात है जो इस सीरीज का एक ड्राबैक है लेकिन अब शहर में कुछ खास दिखाया नहीं गया जो काफी अजीब है।

आइए अब बुराइयों पर एक नजर ड़ालते हैं:

बुरे

ओवरएक्टिंग


इस सीरीज में हर किसी ने ओवरएक्टिंग की है फिर चाहे वो मिनिस्टर हो, उसका बेटा हो, अंत में तृप्ति हो, पारुल गुलाटी हों या फिर नील भूपलम हों। ऐसा कोई नहीं है यहाँ सगा जिसने एक्टिंग को नहीं ठगा, और जिन्होंने नहीं ठगा उनके बारे में मैंने ऊपर बात की है। पूरी सीरीज में हर तरफ हर किसी ने एकदम बेकार एक्टिंग की है और ये काफी बुरी बात है।

एक एसपी जो इतने एटीट्यूड में है जैसे वो प्रधानमन्त्री हो और फिर बेवजह की अकड़, स्टाइल और नौटंकी। अरे तुम्हें किसी पर शक है तो बात करो, सवाल पूछो और जब लिली का इंटेरोगेशन हो रहा था तो मुझे ऐसा लगा जैसे मैं साऊथ की कोई फिल्म देख रहा हूँ या फिर जंजीर का रीमेक, दबंग का भी कह सकते हैं जहाँ वो बेवजह के एक्शन करके एक फ्रैंचाइज़ बना रहे हैं पर उसमें कहानी निमित्त मात्र भी नहीं है।

बेवजह का सेक्स सीन

The Raikar Case Hindi WEB-DL S01 Complete 480P 720P (Ep1-07) In ...


एक लड़की अपने घर से परेशान होकर आपके पास ये सवाल पूछने आई कि आखिरकार परिवार ऐसा क्यों है और वो अकेली है तो बस लीजिए आपके पास एक मौका बन गया एक कामुक सीन का। अब क्या है आप वही मसाला परोसिए जिसे 99 प्रतिशत वेब सीरीज पेश कर रही हैं। शुक्र है कि स्पेशल ऑप्स और स्टेट ऑफ सीज में ये सब नहीं था और उन सीरीज को देखकर आप ये समझ सकते हैं कि बिना बेवजह के किसिंग और सेक्स सीन के भी कहानी दिखाई जा सकती है। 

उसके बाद कमाल ये कि लड़के के बाल अगले फ्रेम में एकदम जेल लगे हुए सेट हैं जबकि लड़की के बाल बिखरे और बाएँ गाल पर जिस चोट के निशान के साथ वो आई थी वो भी गायब। मतलब आप किसी के घर जाइए, सेक्स कीजिए और आपके चोट के निशान भी गायब हो जाते हैं। वाह भाई, कंटीन्यूटी नाम की एक चिड़िया पर प्रोडक्शन और डायरेक्शन सभी ध्यान देते हैं और इतनी बड़ी गलती। आपको लग रहा होगा कि बेवजह मैं ऐसा लिख रहा हूँ, लेकिन ऐसा नहीं है, क्योंकि मैं आपको दिखाता हूँ:


अब भाईसाहब ये चोट के निशान हैं जो कार में किडनैप होने के दौरान लगे थे लेकिन ये ऐसे गायब हुए जैसे ___________ सींघ और एक्स्ट्रा मेकअप के निशान दाईं तरफ वाली तस्वीर में अलग से दिखाई पड़ रहे हैं।

जाना था जापान, पहुँच गए चीन

The Raikar Case' review: Web series has plenty of family drama but ...

इस कहानी में कहीं सिरे मिल ही नहीं रहे थे, क्योंकि कहानी कभी इधर तो कभी उधर जा रही थी और फिर राइटिंग टीम ने सोचा कि जब अतुल जी ने सीरीज के शुरूआती एपिसोड में ही बोल दिया कि एक ही तो समझदार बच्चा है उनका तो फिर दूसरे को बुरा कैसे दिखाएं? क्या उसे हम ऐसा इंसान दिखाएं जिसकी वजह से बिजनस में नुकसान हुआ या उसकी वजह से परिवार को शर्मशार होना पड़ा है? अब बड़ा सवाल ये कि राइटर ने जब तरुण का बरीयल दिखाया तो इताशा और उसके एक्स एम्प्लॉई का चक्कर भी साथ में बता दिया है जिसके साथ उसके शारीरिक रिश्ते थे तो अब लड़के को कमजोर कैसे दिखाएं? यूरेका, आइए उसे गे दिखा दें और वो अपने आप ही गलत बन जाएगा।

राइटर्स, क्या आपके पास कोई और ऑप्शन नहीं था? क्या आप इतने बड़े राइटर्स ब्लॉक में थे कि आपको यही सूझा और ये नहीं सूझा कि आप इस एंगल को दिखा सकते थे कि बेटे ने एक बार बिजनस संभाला लेकिन उसकी वजह से नुकसान हुआ लेकिन तभी इताशा ने आकर चीजें संभाली जिसकी वजह से अतुल जी का अपनी बेटी पर यकीन बढ़ गया। ये ख्याल नहीं आया राइटर्स कि इस तरह भी लड़के को बेकार दिखा सकते थे, कि लड़का एक बार जेल हो आया था और इताशा ने उसे बचाया था जैसे इस बार अपने पिता को और इसलिए अतुल जी को अपनी बेटी पर बेटे से ज्यादा यकीन था?

क्या ये संभव नहीं था? क्या ये जरूरी था कि हर एक्टर बेवजह लाउड हो फिर चाहे वो इताशा की माँ हों या फिर मोहित, या फिर पॉलिटिशियन का बेटा या खुद पॉलिटिशियन? क्या ये जरूरी था कि हर किरदार को जरूरत से ज्यादा गर्म दिखाया जाए? एक पुलिसवाला जो कानून को अपनी जेब में लिए चलता है, एक नेता जो अपने पावर पर उछलता है, एक बिजनसमैन जिसका घर अजीब स्थिति में चलता है और राइटर्स जिनसे एक स्क्रिप्ट का ताना बाना नहीं संभलता है और आखिरी में इनफॉर्मर की ब्लर इमेज में आवाज लड़के की होती है, लेकिन असलियत में उसका चेहरा एक लड़की का निकलता है?

भाई कुछ तो सोच लेते बनाते हुए तो कुछ अच्छा ही बन जाता, शायद मैगी इससे अच्छी और टेस्टी बनती, नहीं?

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