Wednesday 29 April 2020

Irrfan Khan: फर्श से अर्श पर पहुचें इस अद्भुत अभिनेता को एक भावपूर्ण श्रद्धांजलि



इस लेख को लिखूं कैसे जब लिखते हुए मेरे हाथ काँप उठ रहे हैं। ऐसा बेहद कम बार होता है जब कोई अपने जाने से कुछ ऐसी टीस मन में और आँसूं आँखों में छोड़ जाता है कि आप उनके परिवार से ना होकर भी उन्हें अपना समझते हैं। ये दर्द ऐसा होता है जिसकी व्याख्या शब्दों में करना मुश्किल है लेकिन अगर किसी शब्द से इसे कहा जा सके तो शायद मसान फिल्म का डायलॉग इसके लिए एकदम उपयुक्त है:


ऐसे कुछ विरले ही होते हैं जो जब सिनेमा में आते हैं तो वो बॉम्बे को सलाम करते हैं और जब वो जाते हैं तो पूरा बॉम्बे उन्हें सलाम कर रहा होता है। ये दर्द क्या है, कैसा है इसकी अनुभूति कर पाना बेहद मुश्किल है क्योंकि किसी कलाकार का इतनी कम उम्र में जाना ना सिर्फ सिनेमा और उसके चाहने वालों के लिए एक ऐसी क्षति है जिसकी भरपाई नहीं हो सकती। ऐसे कई किरदार जिन्हें इरफ़ान साहब ने अपने काम से बेमिसाल बना दिया अब हमारे साथ हमेशा रहेंगे, बस यादों में कहीं सिमटकर।

समय का पहिया किसी के लिए नहीं रुकता और इंसान पल भर में हकीकत से याद बन जाता है लेकिन ये वक्त का पहिया अनवरत चलता है, बिना थके, बिना रुके। ना इसके मन में किसी की मौत का दर्द है ना किसी की किलकारी का आनंद लेने का समय। ऐसे समय में यश चोपड़ा जी द्वारा 1965 में बनाई गई फिल्म वक्त याद आती है, जिसका हर गीत अमर है लेकिन ये गीत, इस गीत का कोई सानी नहीं है:



चंद्रकांता के दिनों से काम कर रहे इरफ़ान जी ने आज सुबह आखिरी साँस ली लेकिन इस दौरान वो हर दिल अजीज बन गए थे और उन्होंने हर काम को इतनी बखूबी किया कि जिसका जवाब नहीं है। अपने उन दिनों को याद करते हुए इस महान कलाकार ने कहा:



इसमें कोई दोराय नहीं कि उनके बारे में कहने को बहुत है लेकिन अंदर से दिल कहीं ना कहीं जब्त है, और साथ ही एहसास भी अंदर जब्त है। अगर कुछ याद आ रहा है तो लाल कप्तान का ये डायलॉग 'आदमी के पैदा होते ही काल अपने भैंसे पर बैठकर चल पड़ता है उसे वापस लिवाने। आदमी की जिंदगी उतनी जितना समय उस भैंसे को लगा उसतक पहुँचने में।' इसी बात को पद्मभूषण श्री हरिवंशराय बच्चन जी ने भी अपनी कालजयी कविता मधुशाला में भी कहा है:

छोटे-से जीवन में कितना प्यार करुँ, पी लूँ हाला,
आने के ही साथ जगत में कहलाया 'जानेवाला',
स्वागत के ही साथ विदा की होती देखी तैयारी,
बंद लगी होने खुलते ही मेरी जीवन-मधुशाला।

बच्चन जी ने अपनी एक अन्य कविता में भी इसे कहा था, जिसका शीर्षक था 'कहते हैं तारे गाते हैं':

सन्नाटा वसुधा पर छाया,
नभ में हमनें कान लगाया,
फ़िर भी अगणित कंठो का यह राग नहीं हम सुन पाते हैं
कहते हैं तारे गाते हैं

स्वर्ग सुना करता यह गाना,
पृथ्वी ने तो बस यह जाना,
अगणित ओस-कणों में तारों के नीरव आंसू आते हैं
कहते हैं तारे गाते हैं

उपर देव तले मानवगण,
नभ में दोनों गायन-रोदन,
राग सदा उपर को उठता, आंसू नीचे झर जाते हैं
कहते हैं तारे गाते हैं

इस आर्टिकल का अंत उस महान आर्टिस्ट, इंसान की आवाज़ में जहाँ वो खुद अपनी तबियत के बारे में बता रहे हैं:


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