लॉकडाउन का दौर है और आप इस दौरान बाहर निकलकर धूम वाले ऋतिक रौशन बनना चाहते हैं कि तभी चेक पोस्ट पर पुलिस दिखाई देती है जो आपको रोकती है लेकिन आप बैरिकेडिंग तोड़कर निकल जाते हैं। उसके बाद पुलिस आपके पीछे आप उनसे आगे भागते हैं और अंत में जब गेम में करने वाली खराब ड्राइविंग आप असल जिंदगी में करते हैं तो आपको पुलिस पकड़ लेती है।
इससे पहले कि आपके साथ कुछ मांडवली हो सके एक वकील फ्री में आपको छुड़ाने के लिए पैसे मिलने की एवज में आ जाता है और तभी आपके पापा जो विधायक हैं अपने वकील को भेजकर आपको छुड़वाने की कोशिश करते हैं लेकिन आप पारिवारिक वकील से ज्यादा विश्वास उस नए वकील पर करते हैं जिसने फीस लिए बिना ही आपकी जान बचानी चाही है, जबकि असलियत ये है कि आपके पारिवारिक वकील ने गेम खेलकर आपको बचाया और उसे रूपए भी नहीं दिए।
आखिरकार जब कोई हल नहीं निकलता तो आप पारिवारिक वकील के साथ घर आते हैं जिसमें वकील की मौत हो जाती है और जो वकील फ्री में आपको बचाने आया था उसकी कार का एक्सीडेंट हो जाता है। आप इस ड़र में रहते हैं कि ये सब आपके कारण हुआ है कि तभी वो एक्सीडेंट वाला वकील आपको नजर आता है। एक तरह से ये है स्ट्रीमिंग प्लेटफार्म नेटफ्लिक्स की नई फिल्म एक्सट्रैक्शन की कहानी एक अलग पैरलेल कहानी की जुबानी।
अगर आप अभिनेता हैं या फिल्मी दुनिया से किसी भी तरह का ताल्लुक रखते हैं तो आप पैरलेल का अर्थ समझ जाएंगे। ऐसा नहीं है कि फिल्म में सब बुरा ही था लेकिन कुछ चीजें थीं जिनपर ध्यान नहीं दिया गया और वो थोड़ा कष्टकारी हो जाता है। आप बासमती चावल दिखाकर अगर खिचड़ी वाला चावल खाने में परोसेंगे तो लोग गुस्सा तो होंगे ही और अगर डॉक्टर आपके द्वारा बीमारी के लक्षण बताए बिना ही दवाई दे दे तो आप उसके काम पर सवाल करेंगे या नहीं?
कहीं ऐसा तो नहीं कि वो आपको चूरन समझकर चूरन वाली टेबलेट देकर कह रहा हो कि इससे आपकी बीमारी ठीक हो जाएगी। इससे बड़ी बात तो तब होगी जब आप उस चूरन वाली टेबलेट को अपनी बीमारी का इलाज समझ रहे हों लेकिन वो आपकी गैस की परेशानी ठीक करे जबकि असल बात तो वहीं की वहीं हो।
ये सारे पैरलेल हैं जिन्हें आप कनेक्ट करने की कोशिश कर सकते हैं, और ये बात सच है कि जीवन में स्टीव जॉब्स की स्टैंफर्ड यूनिवर्सिटी में कही गई स्पीच सच हो जाती है। दीगर बात ये है कि हर कोई इन डॉट्स को सही से कनेक्ट कर सके ये मुमकिन नहीं, और इसी को ध्यान में रखकर आइए आपको बताता हूँ कि किन पलों ने बासमती का आनंद दिया और किन पलों ने हमें चूरन बनाया। अब बासमती से पहले आप अपने पेट को सही करना चाहेंगे तो आइए पहले चूरन की बात करते हैं:
चूरन
सबप्लॉट की कमी
ढ़ाका का ड्रग किंग अगर मुंबई के ड्रग किंग के बच्चे को उठाने की साजिश करता है तो उसने सिर्फ आपके एक्शन को देखने और अपनी टीम की वाट लगवाने की तो नहीं सोची होगी। ये तो वो अपने गैंग के लोगों से कहकर भी कर सकता था फिर उसे किसी और के बच्चे को उठाने की क्या जरूरत आन पड़ी? क्या उसे पैसे की कमी थी जो वो किसी और के बेटे को इतने किलोमीटर दूर ले जाएगा जबकि वो खुद सोने के बर्तन में खाना खा रहा है। ये कह सकते हैं कि उसकी डाइनिंग टेबल में लोगों की कमी जरूर थी लेकिन साथ ही कमी थी उस सबप्लॉट की जिसकी वजह से ऐसा किया गया। इस सबप्लॉट की कमी को बस एक डायलॉग से पूरा कर देना कहीं से सही नहीं लगता। जब क्रिस अपनी टीम से इनका इतिहास पूछते हैं तो बस ये कहकर बात खत्म कर दी जाती है कि इनके बीच पुरानी रंजिशे हैं।अगर ऐसा था तो आप भी मिर्जापुर की तरह एक सीरीज दिखा सकते थे जिसमें इनकी रंजिश दिखाई जा सकती थी और अगर फिल्म ही रखना था तो कम से कम किसी एक रंजिश का जिक्र तो करते कि लोगों को पता रहे कि इस पुरानी लड़ाई का बदला लेने के लिए ये किडनेपिंग हुई है।
अब ये अक्षय कुमार और श्रीदेवी जी की 2004 में आई फिल्म 'मेरी बीवी का जवाब नहीं' तो है नहीं कि इसके अंत में ये दोनों हाथों में हाथ पकड़कर कहते हैं कि हम बदला लेंगे और बस उसके बाद कहानी खत्म जिसके बाद बस एक फ्रेम आया जिसमें लिखा था 'और फिर उन दोनों ने मिल के बदला लिया'। अगर कोई प्लाट दिखा रहे हो तो उसका फ्लोरिंग एरिया और बाकी एरिया भी तो बताओ लेकिन इस फिल्म में कोई सबप्लॉट नहीं था।
पंकज त्रिपाठी बस भारतीय दर्शकों को रोमांचित करने के लिए ट्रेलर और फिल्म में हैं
ये पॉइंट लिखते समय मुझे प्यासा फिल्म का 'जिन्हे नाज़ है हिन्द पर वो कहाँ हैं' गीत याद आता है और खासकर ये अल्फाज:
'ये पुरपेंच गलियां, ये बदनाम बाज़ार
ये गुमनाम राही, ये सिक्कों की झनकार
ये इसमत के सौदे, ये सौदों पे तकरार
जिन्हे नाज़ ।।।
ये सदियों से बेखौफ़ सहमी सी गलियां
ये मसली हुई अधखिली ज़र्द कलियां
ये बिकती हुई खोखली रंगरलियाँ
जिन्हे नाज़ ।।।'
इस गीत के बोल साहिर लुधियानवी साहब ने लिखे हैं जिसको संगीत से सजाया है सचिन देव बर्मन जी ने और गीत को गाया है श्री मोहम्मद रफी जी ने। आप इसे विविध भारती का वो शो ना समझने लगिएगा जिसमें बिनाका गीतमाला को पेश करते थे अमीन सयानी साहब और जिनकी आवाज के हम सब आजतक कायल हैं। इस गीत के बोल एक हकीकत हैं क्योंकि एक वो दौर था जब प्रियंका चोपड़ा एक फिल्म करने क्या गईं कि पूरा मीडिया इसी बात को कवर कर रहा था। जब दीपिका पादुकोण एक फिल्म करने गईं तो उसका मीडिया में बड़ा हल्ला मचा। ऐसा लगा जैसे सत्यजीत रे साहब और ए आर रहमान साहब के बाद ये दोनों भारत के लिए ऑस्कर लेकर आई हों, जबकि वो काम गुनीत मोंगा जी ने किया और वो भी एकदम सादगी से।
अब कहाँ है वो मीडिया जो इस तरह की हाइप देता है लेकिन अगर बात की जाए पंकज जी की भी तो उन्हें एक फिलर के तौर पर इस्तेमाल किया गया जिनका बस इतना काम था कि वो आकर एक छवि स्थापित करें। अब उन्होंने वो किया या नहीं ये हम आगे बताएंगे लेकिन तबतक आप ये समझ लीजिए कि ये ही थे वो बासमती जिन्हें खिचड़ी की तरह पेश किया गया।
एक्शन से खामियों को भरने की कोशिश
ये बिल्कुल मुमकिन है कि आप इसे आगे ना पढ़ना चाहें और मैं आपको रोक नहीं सकता क्योंकि आप अपनी मर्जी के मालिक हैं लेकिन इस तरह से एक्शन दिखाकर क्या कोई अपनी गलती को छुपा सकेगा। वैसे तो कई पल हैं लेकिन मैं आपको कुछ बेहद आसानी से दिखाई पड़ने वाले पलों के बारे में बताता हूँ। जब टाइलर और ओवी फंस जाते हैं तो उस बीच रणदीप हुड्डा आकर बच्चे को बचाने की कोशिश करते हैं लेकिन उन्हें ट्रक से चोट लगती है।इसके अगले ही पल हम देखते हैं कि टाइलर और ओवी उसी सड़क पर आगे बढ़ते हैं जिसपर रणदीप चोट लगने के बाद गिरे थे और बड़ी बात ये कि सामने खड़ी गाड़ी जिससे हुड्डा साहब टकराते हैं वो भी गायब है और रणदीप साहब भी। अरे भाई अगर कैमरा एंगल दिखा रहे हो तो कुछ तो सोच लेते कि कैसे इस गलती को दिखाने से बचाया जाए।
उसके बाद हमें हुड्डा साहब एक दोयम दर्जे वाले चौल जैसी जगह में रुकते हुए नजर आते हैं जबकि इस बीच वो अपनी चोटिल नाक को ठीक करते हैं। जब इस वापसी की शुरुआत हुई तो उनकी नजर में टाइलर थे और फिर वो खुद ही पहुँच गए उसे बचाने, और इस बीच धोखा देकर पेमेंट ना करना जैसे कुछ पल हैं जो ऐसी भावना देते हैं कि मन था कढ़ाई पनीर बनाने का लेकिन बनते बनते वो पालक पनीर ही बन गई।
ऐसे कई सीन हैं जिनमें इस बात को देखकर समझा जा सकता है, खासकर तब जब आप फिल्म उद्योग को पसंद करते हों या इसमें काम करने की इच्छा रखते हों या वो नजर रखते हों (खुद की तारीफ नहीं कर रहा) जिससे आप इस कंटीनुअस एक्शन वाले सीन में आनेवाले कट को साफ समझ सकते हैं। ये तो फिर भी चलिए किसी जानकार के लिए मुमकिन है लेकिन एक कहानी दिखाना जिसमें छद्मय के सहारे आपने कहानी बुनी लेकिन उसे सही से सिल नहीं सके।
अब जब हमने कुछ चूरनों की बात कर ली है तो आइए अब बासमती के बारे में भी बात करते हैं क्योंकि पेट साफ होने के बाद बासमती चावल खाने का अपना ही आनंद है:
बासमती
रणदीप हुड्डा
जी हाँ, इस सीरीज में अगर किसी ने जान डाली है तो वो हैं रणदीप हुड्डा। हुड्डा साहब ने हाईवे के बाद जो गाड़ी चलानी शुरू की वो इसमें भी अच्छी ही चली है। क्रिस के फैंस निराश ना हों क्योंकि जब पैसा लगा होता है तो काम अच्छा होता ही है, और वो इससे पहले भी एक्शन कर चुके हैं तो ये नई बात नहीं थी। जो नई बात थी वो था रणदीप का स्टांस जो मार्केट में लड़ते समय बिल्कुल वैसा ही था जैसा एक आर्मी ऑफिसर का होना चाहिए।
आप चाहें तो नेटफ्लिक्स पर हर फ्रेम पॉज करके देख सकते हैं और आपको यही देखने को मिलेगा कि टूटी नाक और जख्मी पैर के बावजूद उन्होंने धमाल किया है। वो जैसे दंगल का पहला कुश्ती सीन था ना जिसमें ऑडियो और वीडियो एकदम तालमेल में थे ठीक वैसे ही रणदीप का किरदार और उनका काम दोनों ऐसी तालमेल में थे कि जिसका जवाब नहीं।
एक फ्रेम में भी कमाल कर जाने वाले पंकज त्रिपाठी जी
अगर आपने पंकज जी का फिल्म कम्पैनियन पर एफसी अनफ़िल्टर्ड देखा हों या राज्यसभा टीवी का प्रोग्राम गुफ्तगू देखा हों और इन दोनों शोज के होस्ट के साथ इनकी बातचीत देखी हों तो आप समझ चुके होंगे कि मैं क्या कहने वाला हूँ।
ये वो एक्टर हैं जो फ्रेम के बाहर रहकर भी अपनी छाप छोड़ देते हैं तो जब ये फ्रेम में होंगे तो क्या कर देंगे ये अलग से बताने की जरूरत नहीं है। 2 मिनट भर कुल सीन और उसमें भी एक अलग ही इम्पैक्ट छोड़ते हैं पंकज जी और ये वो बासमती हैं जो पिताजी के साथ रहते हैं, पिताजी अकेले रहते हैं और इनके पिताजी एकदम सही कहते हैं कि 'जो खीर नहीं खाया वो मनुष्य योनी में पैदा होने का पूर्णतः फायदा नहीं उठाया।'
गोलशिफ्ते फरहानी का काम
गोलशिफ्ते फरहानी ने अपने किरदार को जिस खूबसूरती से निभाया है उसके लिए उनकी तारीफ होनी चाहिए। इन्होने अपने काम को बखूबी दर्शाया और पूरी फिल्म में ये अपने काम से कमाल करती नजर आईं। इसमें पूरे मिशन को देखना हों या आखिरी में हेलीकॉप्टर को उड़ाना हों या फिर प्रियांशु पैंयूली को इन्होने पूरी फिल्म में अपना प्रभाव छोड़ा है।
इस आर्टिकल को मैं यहीं पंकज जी की एक बात से खत्म करना चाहूँगा, और वो ये है कि एक्टिंग करना हो या खाना बनाना दोनों में अगर कुछ भी ज्यादा हो जाए तो चीज खराब हो जाएगी।
लेखक: अमित शुक्ला (इंस्टाग्राम पर भी इसी यूजरनेम के साथ)
No comments:
Post a Comment