आजकल फिल्मों का कलेक्शन इस बात का मापदंड है कि आपकी फिल्म हिट है या फ्लॉप। आपने देखा होगा कि बेकार से बेकार फिल्म जैसे कि 'रेस 3' जिसमें ना सर है ना पैर, अगर है तो सिर्फ सलमान खान की शक्तिमान सरीखी मूव्ज और फैंस की बोरियत।
खैर ये मेरी राय है, लेकिन मैंने कुछ ऐसे अतिउत्साही भी देखे जिनके लिए सलमान को गलत कहना मतलब कायनात को गलत कहना है और वो इस बात को मान ही नहीं पा रहे हैं कि फिल्म में कुछ भी कमी हो सकती है, खासकर अगर उसमें सलमान हैं तो।
मैंने ये नहीं कहा कि उनकी हर मूवी खराब होती है, लेकिन अगर आपको ऐसे लोग दिखें जिन्हें न्यूटन और कड़वी हवा में कोई दम ना लगे, लेकिन बूम और ग्रैंड मस्ती अच्छी लगे तो ये सोचना ज़रूरी है कि हम कंटेंट को महत्व देना कब शुरू करेंगे।
ऐसे कई फिल्मों के फैंस हैं जिन्हें ये तक याद नहीं कि आँखों देखीं सरीखी कोई फिल्म भी आई थी, उन्हें तो सिर्फ वो मसाला फिल्में याद हैं जिनमें कुछ अद्भुत कंटेंट कम और बेवजह की चकल्ल्स ज़्यादा दिखती है। मतलब एक हाथ मारने पर गाड़ियों और लोगों का उड़ना उन्हें अच्छा लगता है, लेकिन आँखों देखीं के बाउजी का कहना बुरा।
शायद यही वजह है कि ऑस्कर विजेता सत्यजीत रे साहब ने बॉलीवुड में महज 2 फिल्में बनाने के बाद बॉलीवुड को अलविदा कह दिया, क्योंकि शायद यहाँ की पैसों से चकाचौंध कर देने वाली दुनिया के झांसे में वो नहीं आना चाहते थे।
अब वक़्त है कि कंटेंट बेस्ड फिल्मों को हिट कहा जाए, क्योंकि गर्म हवा बनाना सबके बस की बात नहीं, और वो किसने बनाई है, शायद ये भी बहुतों को याद नहीं।
अति उन्मादा
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