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संजू फिल्म आज सबके बीच आ ही गई। अब आप इस फिल्म को पसंद करें या नापसंद, लेकिन इस बात में कोई दोराय नहीं है कि संजय दत्त की कहानी को दिखाने के प्रयास में राजकुमार हिरानी ने काफी मेहनत की है।
संजू असल में संजय दत्त की ज़िंदगी पर आधारित है जिसने काफी बड़े पहलुओं को बेहद सजीव तरिके से दिखाया है। अगर आप संजू को नापसंद करते हैं तो आपको लगेगा कि इस फिल्म से संजय दत्त ने खुद को साफ़ बताने की कोशिश की है, जबकि अगर आप संजू के फैन हैं तो आपको इसका बिल्कुल उलट लग सकता है।
ये सोचना ज़रूरी है कि आखिरकार एक इतने बड़े परिवार का लड़का, एक इतनी मुश्किल ज़िन्दगी में कैसे पड़ गया। ये तो आप विवेचना करें, लेकिन हम आपको बताते हैं उन5 कारणों के बारे में जिसकी वजह से आपको ये फिल्म देखनी चाहिए:
5 कहानी
संजय दत्त की कहानी ऐसी है कि उसे समझने में काफी वक़्त लगेगा। एक लड़का जो इतने बड़े परिवार में जन्मा, एक अदाकार रहा, वो आखिरकार इस तरह की परेशानियों में कैसे पड़ गया।
उनकी ज़िन्दगी काफी कश्मकश में गुज़री लेकिन उसके बावजूद उन्होंने इसे बेहद सलीके से गुज़ारा और उसे अब परदे पर भी बताना चाहा। ये बात देखकर अच्छा लगा कि कोई व्यक्तिगत चीज़ों को भी पूरी शिद्द्त से बताना चाहता था।
अगर आप वाकई में कोई अच्छी कहानी देखना चाहते हैं तो इस फिल्म को ज़रूर देखें।
4 एक्टिंग
रनबीर कपूर ने संजय दत्त को पर्दे पर दिखाने के लिए जिस तरह की मेहनत की वो साफ़ दिखाई देती है। संजय दत्त का बोलने का अंदाज़ हो या फिर चलने का, रनबीर कपूर ने पूरी कोशिश की है कि वो दत्त जैसे दिखें, बोलें, और काफी हद तक वो उसमें सफल भी रहें हैं।
उनका जेल के दिनों को बखूबी दिखाना इस बात को साबित करता है कि वो एक माहिर एक्टर हैं जिन्होंने उतना ही दिखाया जितना या तो स्क्रिप्ट या डायरेक्टर की डिमांड थी।
3 कास्ट
अब जैसे क्रिकेट में होता है कि स्ट्राइकर सिर्फ तभी अच्छे से खेल सकता है जब दूसरे छोर पर कोई उनका साथ निभाता रहे और इस फिल्म में वो काम सपोर्टिंग कास्ट ने किया है। परेश रावल जी ने दत्त साहब का किरदार बखूबी निभाया तो वहीँ मनीषा कोइराला ने नरगिस जी का किरदार। दीया मिर्ज़ा मान्यता दत्त के तौर पर काफी प्रभावशाली थीं, और जिम सरभ उनके मित्र मिस्त्री के किरदार के रूप में प्रभावशाली थे।
इन सबके बीच विकी कौशल ने अपने एक्टिंग के कौशल का लोहा हर सीन में मनवाया है। उनके आने से फिल्म में एक नई जान आ गई और फिल्म बेहद अच्छी लगी।
2 एग्ज़िक्यूशन
जब ज़िन्दगी इतनी बड़ी हो तो ये देखना ज़रूरी होता है कि हम भला किस चीज़ को दिखाएं और किसे रहने दें। इस चीज़ में इस फिल्म के डायरेक्टर, राइटर और कैमरामैन ने महारत हासिल कर रखी थी।
उन्होंने सिर्फ उन्हीं पलों को दिखाया जो ज़रूरी थे, और उन चीज़ों को हटा दिया जिनकी ज़रुरत या तो नहीं थी या जिसकी वजह से फिल्म एकदम मेलोड्रामा लगे। हालांकि ये कहना कि इस दौरान आपकी आँखें नम ना हों ऐसा मुमकिन नहीं है।
उन्होंने सिर्फ उन्हीं पलों को दिखाया जो ज़रूरी थे, और उन चीज़ों को हटा दिया जिनकी ज़रुरत या तो नहीं थी या जिसकी वजह से फिल्म एकदम मेलोड्रामा लगे। हालांकि ये कहना कि इस दौरान आपकी आँखें नम ना हों ऐसा मुमकिन नहीं है।
1 डायरेक्शन
जब ज़िन्दगी इतनी बड़ी हो तो उसे सही से सिर्फ एक ऐसा डायरेक्टर ही दिखा सकता है जिसे इसमें महारत हासिल हो, और हिरानी साहब में वो हुनर है कि वो इस चीज़ को दिखा सकें।
उन्होंने जिस तरह से संजू की कहानी को अभिजात जोशी के साथ पन्नों के साथ साथ स्क्रीन पर उतारा है वो काबिल-ए-तारीफ है।
अगर आप अच्छा सिनेमा देखना चाहते हैं तो इस फिल्म को ज़रूर देखें।
लेखक: अमित शुक्ला
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