Saturday, 30 June 2018

4 शब्द जिनको लखनऊ में बोलने का अपना ही मज़ा है


अगर आप लख़नऊ के रहने वाले हैं या कभी यहाँ आए हैं तो आपको ये मालूम होगा कि इस शहर की आबो हवा में एक अलग ही मज़ा है। वो चौक की गलियाँ, और वो सुबह सुबह दही जलेबी का मज़ा। वो सुबह उगते सूरज को गोमती या मरीन ड्राइव से देखना और वो गंज की अपनी खुशबू।

जी हाँ, ये सोचकर ही कितना अच्छा लग रहा है इसका अंदाजा मैं लगा सकता हूँ, और अगर आप वाकई में यहाँ कुछ वक़्त दे चुके हैं तो यहाँ के मज़े को कभी नहीं भूल सकेंगे। लख़नऊ आपके अंदर कुछ इस तरह बस जाता है, जैसे आपकी पहली गर्लफ्रेंड से जुडी यादें।

जितनी खूबसूरत यहाँ की आबो हवा और उसके पकवान है, उतने ही प्यारे यहाँ के मोनुमेंट्स हैं। पर आप ये कह सकते हैं कि मोनुमेंट्स तो हर शहर में होते हैं, और मैं इस बात से इंकार नहीं कर सकता, लेकिन हिंदी ही नहीं, व्याकरण में भी कुछ ऐसे शब्द हैं जो आपको सिर्फ लख़नऊ में ही सुनने को मिलेंगे, और मैं यहाँ आपके नज़र उन्हें करता हूँ:

4 भौकाल



अगर आप लख़नऊ में हैं और आपने ये शब्द नहीं सुना तो आपका लखनऊ में होना बेकार हो गया। ये एक ऐसा शब्द है जिसका इस्तेमाल आपको हर बंदा करता हुआ दिखेगा। इस शब्द के बिना लखनऊ वाले का वाक्य ही पूरा नहीं होता तो फिर आप इसे ना सुने ऐसा नहीं हो सकता।

3 तफरी


दिल्ली वाले चाहे जितना अपने टाइमपास और मुंबई वाले अपनी फालतुगिरी पर नाज़ करें, जो मज़ा तफरी कहने में है वैसा कोई दूसरा नहीं। ये एक ऐसा शब्द है जिसको सुनते ही लगता है जैसे कोई बड़ा काम काम हो रहा है ना कि 'टाइमपास'।

2 कंटाप

आप चाहे कितने भी चांटें लगाने या कान के नीचे बजाने की बात करें, जो सौंदर्य कंटाप शब्द सुनने में है वैसा दूसरा कहीं नहीं। जी हाँ, सोचिए आपको कोई परेशान कर रहा हो और आप उससे कहें कि हम चांटा मार देंगे?

कितना नीरस सा नहीं लगता? वहीँ ये सोचिए,'तुमने ज़्यादा तफरी की तो हम कंटाप धर देंगे' में कितना आनंद आ रहा है।

1 छीछालेदर


जब लाइफ की लगी हो वात तो भला कैसे करेंगे आप ठाठ, लेकिन इतना बड़ा वाक्य बोलने की क्या ज़रूरत है जब आप सिर्फ एक शब्द में कह सकते हैं वो सारी बात, और वो शब्द है,'छीछालेदर'।

एक शब्द और आपकी पूरी कहानी सामने वाले को समझ में आ जाती है। 

तो फिर अपना और सामने वाले का समय बचाइए, और मुस्कुराइए, क्योंकि आप लखनऊ में हैं।

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