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सत्यमेव जयते एक ऐसी फिल्म है जिसका इंतज़ार काफी समय से लोग कर रहे थे, और अब जब उसका ट्रेलर सबके बीच है, तो ये कहना कि उसने निराश किया कोई अतिश्योंक्ति नहीं होगी। इस ट्रेलर से ये बात तो साबित हो गई कि इसमें भी निखिल अडवाणी की पिछली फिल्मों की तरह देशभक्ति दिखाई जाएगी, लेकिन एयरलिफ्ट, बेबी सरीखी ज़बरदस्त फिल्मों के मुकाबले, इस फिल्म के ट्रेलर को देखकर निराशा ही हाथ लगी।
हो सकता है कि आप मेरी बातों से इत्तेफाक ना रखें लेकिन इस फिल्म में क्या सही नहीं लगा, आइए आपको बताते हैं:
3 सिर्फ एक्शन
एक ट्रेलर में हर वो मसाला होना चाहिए जो आपको उस फिल्म की तरफ आकर्षित करे, लेकिन इस फिल्म के ट्रेलर में सिर्फ एक्शन ही था, और कुछ नहीं। कहीं कोई पिट रहा था, कहीं कोई पेट्रोल पम्प जल रहा था, और फिर कुछ हद तक ए वेडनसडे की झलक भी दिखी।
हालांकि ये कहना ज़रूरी है कि जहाँ एक तरफ ए वेडनसडे में एक्शन के साथ साथ कुछ बेहद अच्छे प्लॉट्स थे, इस फिल्म के ट्रेलर की शुरुआत एक्शन और अंत एक्शन से हुआ। एक्शन अच्छी चीज़ है, लेकिन उसे इतना भी मत डालिए कि बोरियत होने लगे।
फ़ोर्स सीरीज़ में वो ठीक लगता है, पर इसमें ऐसा सही नहीं लग रहा। अगर फिल्म किसी तरह इस बात को साबित कर सके तो अच्छी बात है।
2 डायलॉग्स
अब ऊपर लगी तस्वीर के दौरान मनोज बाजपेई सरीखे एक्टर को अगर इस तरह का डायलाग बोलना पड़े कि कानून को हाथ में लेने का हक सिर्फ कानून को होता है, या फिर जॉन का वो डायलाग कि इस 2 टके की जान लेने के लिए 9 मिमी की गोली नहीं 56 इंच का सीना चाहिए, तो आप य सोच सकते हैं कि फिल्म में और किस स्तर के डायलॉग्स का इस्तेमाल किया गया होगा।
आप एक उच्च स्तर के अदाकार हैं और ऐसे डायलॉग्स सुनकर ही लग रहा है कि फिल्म की कहानियों में डायलॉग्स पर कुछ ख़ास काम नहीं किया जा रहा है। एक तरफ एयरलिफ्ट और स्पेशल 26 सरीखी फिल्म्स हैं, जिनको आज भी देखने का मन करता है, लेकिन अगर सही मायनो में फिल्म के डायलॉग्स का स्तर ये है तो सोचना पड़ेगा कि इस समय फिल्म का स्तर क्या चल रहा है।
1 बेवजह अग्रेशन
इस फिल्म के ट्रेलर को देखते समय मुझे तिरंगा फिल्म से राजकुमार साहब का वो डायलाग याद आ गया जो उन्होंने नाना पाटेकर जी को कहा था,'गर्मजोशी अच्छी चीज़ है वागले, लेकिन हर जगह काम नहीं आती।'
यही बात इस फिल्म में दिखाए गए अग्रेशन पर भी लागू होती है। आजकल हर एक्टर बॉडी बिल्डर है और हर एक्टर एक्शन कर सकता है तो आप इतना ज़्यादा अग्रेशन दिखाने की जगह अगर उसको थोड़ा था स्पष्ट रूप से दर्शाते तो एक अच्छी बात होती।
वो जैसे कहते हैं ना कि ज़्यादा आंच और ज़्यादा खानसामे किसी भी खाने का स्वाद बिगाड़ सकते हैं, कुछ वही हाल इस अग्रेशन की वजह से इस फिल्म का ना हो जाए।
लेखक: अमित शुक्ला
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