Friday, 27 April 2018

लखनऊ बुक फेयर का आगाज़ हो गया है

आज बड़ी व्यस्तता थी। पहले पहल तो यही सोच रहा था कि क्या आज काम खत्म होगा भी या नहीं। खैर आज सुबह जब अखबार पढ़ा तो ये एहसास हुआ कि आखिरकार अखबार पढ़ना क्यों अच्छा है।

आजकल अखबार में शहर में होने वाली प्रमुख घटनाओं के बारे में लिखा होता है। जैसे फला मंत्री वहां आएंगे, या फला संतरी वहां जाएंगे। वैसी ही एक घटना पर मेरी निगाह पड़ी जिसमें ये लिखा था कि आज लखनऊ बुक फेयर शुरू होने जा रहा है।


अब मुझ जैसे किताबी कीड़े को और क्या चाहिए? पढ़ने को एक किताब हो और चाय का प्याला, ये गठजोड़ बेहद निराला है। वैसे चाय तो वहां थी पर पीने का दिल नहीं किया।


जैसे ही कदम अंदर पड़े तो उस खुले बाग में ऐसा लगा जैसे वो सारी किताबें मुझे बुला रही हों। एक एक कर लगभग सारे स्टाल्स पर गया, पर जिस किताब की उम्मीद थी वो वहां मिली ही नहीं।



मुंबई हो या दिल्ली, चेन्नई हो या लखनऊ, हर जगह की किताबें वहां दिखी।


जिस चीज़ ने मुझे हँसा दिया वो था रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया का स्टाल जहां के अधिकारी समय के पाबंद थे। शाम के आफिस के समय की समयसीमा समाप्त थी और उनकी सेवाएं भी।

कुछ यही हाल आल इंडिया रेडियो के स्टाल पर भी था जहां कोई था ही नहीं। वो जैसे बस में रुमाल डालकर हम सीट पर कब्ज़ा कर लेते हैं कुछ वैसा ही आलम वहां की कुर्सियां भी बयां कर रही थी। अगर कोई आकर पूछे तो ये कहा जा सकता है कि सर मेरा बैग था, मतलब मैं उपस्थित था।

















मेरठ से आए हुए स्टाल ने मेरा ध्यान अपनी तरफ खींचा और उनकी सुंदर कृतियाँ देखकर बेहद अच्छा लगा।


पर एक बुक फेयर में हैंडलूम स्टाल कुछ समझ नहीं आया।



वैसे अगर आप शहर में है तो इस बुक फेयर में ज़रूर जाएं क्योंकि किताबें सबसे अच्छी दोस्त होती हैं।

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