नाटक एक ऐसी विधा है जिसमें जाने के बाद आप उससे दूर नहीं रह सकते। आप अनायास ही उसकी तरफ खिंचे चले जाते हैं।
पिछले हफ्ते मंगलवार की देर शाम मुझे ये पता चला कि आज एक नाटक 'टर्न' होने वाला है। बस फिर क्या था, मैंने प्लान बनाने शुरू किए और इस नाटक का आनंद लिया।
नाटक की कहानी दो बुजुर्ग लोगों के इर्द गिर्द है जो अपने जीवनसाथी खो चुके हैं और मुंबई में रहते हैं। वहां कि दौड़ भाग भरी जिंदगी, मुझे अपनी स्पेस चाहिए की जद्दोजहद और फ्रीडम की लड़ाई।
नाटक में दोनों अपने खाली पड़े वक्त को काटने की कोशिश करते हैं। आभा अभी पुणे से आई है और अपने बच्चे निशांत के साथ रहती है। उसी फ्लैट में उसके साथ लिवइन रिलेशनशिप में रह रही महिला मित्र भी है जो निशांत की माँ से हर सुबह लड़ती है। इस चक्कर में आभा का गाने का क्रम बंद हो चुका है और वो अब बालकनी पर खड़े होकर चाय भी नहीं पीती।
कौन भला किसका जीवनसाथी है,
ये अफसाना है, जिसकी मियाद बाकी है,
जब ज़िन्दगी के कारवाँ को चलते ही रहना है,
तो ये ना कहिए कुछ खत्म हुआ, कहिए अभी बात बाकी है।
- शुक्ला
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