मेरे मित्र निशांत यादव जी के ब्लॉग से साभार
बाबरे मन लौट आ आवारगी के दिन गए ।
देख लंबा रास्ता , अब मस्तियों के दिन गए ।।
राह पथरीली मिले या फ़ूल की चादर मिले ।
चल समय पर छोड़ दे , पर बाबरे मन लौट आ ।।
चल समय पर छोड़ दे , पर बाबरे मन लौट आ ।।
चुन लिया है फूल को काँटों के संग इस राह में ।
कौन जाने छोड़ दे ... एक साथी वास्ता ।।
कौन जाने छोड़ दे ... एक साथी वास्ता ।।
राह फूलों की चुने , सब काँटों से किसका वास्ता ।
नींद सुख की सब जियें , दुःख से है किसका वास्ता ।।
नींद सुख की सब जियें , दुःख से है किसका वास्ता ।।
आ अंधेरो से लड़े , अब रौशनी की लौ लिए ।
चल जला दें राह में रौशन किये लाखो दीये ।।
चल जला दें राह में रौशन किये लाखो दीये ।।
छोड़ दे अब साथ उसका जिसने अँधेरे दिए ।
बाबरे मन लौट आ आवारगी के दिन गए ।।
बाबरे मन लौट आ आवारगी के दिन गए ।।
रौशनी की एक लौ है काफी , मन के अँधेरे तेरे लिए ।
देख फिर भी लाया हूँ मैं , आशा के लाखो दीये ।।
देख फिर भी लाया हूँ मैं , आशा के लाखो दीये ।।
फिर से न विखरेगा तू , आज ये वादा तो कर ।
देख ले आया हूँ मैं, निशाँ मंजिलो के ढूंढ कर ।।
देख ले आया हूँ मैं, निशाँ मंजिलो के ढूंढ कर ।।
लौट आ अब देख ले , जिंदगी दरवाजे खड़ी ।
बाबरे मन लौट आ , आवारगी के दिन गए ।।
बाबरे मन लौट आ , आवारगी के दिन गए ।।
........निशान्त यादव
No comments:
Post a Comment