Monday 27 April 2015

बाबरे मन लौट आ ...

मेरे मित्र निशांत यादव जी के ब्लॉग से साभार


बाबरे मन लौट आ आवारगी के दिन गए ।                                            
देख लंबा रास्ता , अब मस्तियों के दिन गए ।। 

राह पथरीली मिले या फ़ूल की चादर मिले ।
चल समय पर छोड़ दे , पर बाबरे मन लौट आ ।।

चुन लिया है फूल को काँटों के संग इस राह में ।
कौन जाने छोड़ दे  ...  एक  साथी वास्ता ।।

राह फूलों की चुने , सब काँटों से किसका वास्ता ।
नींद सुख की सब जियें , दुःख से है किसका वास्ता ।।

आ अंधेरो से लड़े , अब रौशनी की लौ लिए ।
चल जला दें  राह में रौशन किये लाखो दीये ।।

छोड़ दे अब साथ उसका जिसने अँधेरे दिए ।
बाबरे मन लौट आ आवारगी के दिन गए ।।

रौशनी की एक लौ है काफी ,  मन के अँधेरे तेरे लिए ।
देख फिर भी लाया हूँ मैं , आशा के लाखो दीये ।।

फिर से न विखरेगा तू , आज ये वादा तो कर ।
देख ले आया हूँ मैं, निशाँ मंजिलो के ढूंढ कर ।।

लौट आ अब देख ले , जिंदगी दरवाजे खड़ी ।
बाबरे मन लौट आ , आवारगी के दिन गए ।।

........निशान्त यादव

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