निशांत जी के ब्लॉग से साभार
हम इंसान अपने बजूद को जिन्दा रखने के लिए जिंदगी भर लड़ते है एक दूसरे से लड़ते , परस्थितिओं से लड़ते है और कभी- कभी पीढ़ी दर्द पीढ़ी लड़ते है अपने होने के बजूद हम इंसान जमा कर जाते है बिलकुल मुन्नवर राणा साहव के शेर की तरह ...
मुमकिन है मेरे बाद की नस्लें मुझे ढूंढ़ें
बुनियाद में इस नाम का पत्थर भी लगा दो.
लेकिन ये प्रकृति जिसके गोद में हम पल रहे है ये भी चुपचाप हंसती होगी और फिर एक दिन एक झटके में हमारे बजूद को मिटा जाती है और हम फिर से जुट जाते अपने बजूद को बनाने में ! यही इंसानी जीवन होने का संघर्ष है हम मिटते है बनते और फिर बनते है !!
हम इंसान अपने बजूद को जिन्दा रखने के लिए जिंदगी भर लड़ते है एक दूसरे से लड़ते , परस्थितिओं से लड़ते है और कभी- कभी पीढ़ी दर्द पीढ़ी लड़ते है अपने होने के बजूद हम इंसान जमा कर जाते है बिलकुल मुन्नवर राणा साहव के शेर की तरह ...
मुमकिन है मेरे बाद की नस्लें मुझे ढूंढ़ें
बुनियाद में इस नाम का पत्थर भी लगा दो.
लेकिन ये प्रकृति जिसके गोद में हम पल रहे है ये भी चुपचाप हंसती होगी और फिर एक दिन एक झटके में हमारे बजूद को मिटा जाती है और हम फिर से जुट जाते अपने बजूद को बनाने में ! यही इंसानी जीवन होने का संघर्ष है हम मिटते है बनते और फिर बनते है !!
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