http://www.nishantyadav.in/2015/04/blog-post_24.html
माया और काया पर निर्भर है व्यक्ति यहाँ ।
तन का रंग सब देख रहे मन के रंग से अनिभिज्ञ यहाँ ।।
माया काली ,उजियारे तन की माँग यहाँ ।
काले तन ,उजियारे मन को ले जाऊँ कहाँ ।।
हे ! कृष्ण बताओ क्या तुमने भी झेला दंश यहाँ ।
देखो रंग, प्रेम पर भारी , हे ! कृष्ण यहाँ ।।
रंगो के इस भेद भाव में जीती दुनिया सारी ।
माया के काले पाश बंधी दुनिया सारी ।।
हे ! शनि काला रंग अपना ले जाओ ।
या फिर माया पाश से मुक्ति दे जाओ ।।
मन के काले जग में उजियारा मिले कहाँ ।
हे ! सूर्य कृपा कर उजियारे मन कर जाओ ।।
हे ! चंद्र रात्रि से लड़ जाओ ।
सब काले मन उजियारे से भर जाओ ।।
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