Wednesday 15 April 2015

किसान पस्त, पी.एम. मस्त


ये २०१५ का भारत है साहब, जी हाँ, वही भारत जिसमे अच्छे दिन लाने का सपना लोगबाग को दिखाकर मोदी साहब देश के प्रधानमन्त्री बन गए। प्रधानमंत्री मतलब देश का केंद्र बिंदु। प्रधानमंत्री मतलब लोगों की तकलीफों को समझने वाला, उनका निवारण करने के तरीके बनाने वाला, मगर क्या ऐसा है?

पिछले कुछ वक़्त का हाल देखें तो ये साबित हो जाता है की देश में उसके अन्नदाता को उचित मूल्य नहीं मिल रहा है। जो किसान कभी लोगो की पेट की आग बुझाने के लिए दिन-रात,सुबह-शाम अपने खेतों में काम करते थे वो अब इस ख्याल से ख़ौफ़ज़दा है की कहीं बिगड़े मौसम और सरकार की अनदेखी के कारण वो अपने लगाए हुए पैसे भी पा पाएँगे या नहीं?

जी हाँ, शायद आपको इस बात का अंदाजा नहीं होगा की पहले तो ये किसान अपनी जमा पूँजी लगाकर अपने खेतों में फ़सल उगाते है, फिर उसे मिल में जमा करा देते है, क्योंकि वो एक वक़्त के बाद ही उन्हें पैसा देते है, और वो भी कौड़ियों के भाव। इस साल किसानों को लगभग ३ रूपए पर किलो का भाव मिल रहा है, जो की इस अन्नदाता के लिए एक तमाचा ही है।

आखिर जिसने अपना खून पसीना लगाकर इसको उगाया है उसे ही उसकी चीज़ से महरूम कर दिया जाए तो ये गलत होगा या नहीं? इस पर कमाल ये की जब ये किसान अपना हक़ लेने सरकारी अधिकारी के पास जाते है, तो उनसे रिश्वत मांगी जाती है, और मुआवज़े के नाम पर मिलता कुछ नहीं।

'कल तक जो अन्नदाता था, वो आज भिखारी बना बैठा है,
है किसान का ख्याल नहीं, ये कौन उल्लू सरताज बना बैठा है।'- शुक्ल

आगे शायद कहने की ज़रुरत नहीं की इतने बुरे वक़्त में, जब देश के प्रधानमन्त्री को स्वदेश में होना चाहिए, वो विदेश की सैर कर रहे है, बड़े बड़े होटलों में खाना खा रहे है, और किसान भूखों मर रहा है, या खुद को मार रहा है, क़र्ज़ के कारण, मुफलिसी के कारण।

उम्मीद है की इस बार राशन खराब नहीं किया जाएगा, या खुले में सड़ने को नहीं ड़ाल दिया जाएगा।

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