Sunday 12 April 2015

मुफलिसी भी कमाल है

मुफलिसी भी कमाल है,
ये दौर बहुत बेमिसाल है,
उतरते है नकाब चेहरों से,
जब आप होते कंगाल है,
मुफलिसी भी कमाल है,

इस दौर की क्या सुनाए,
साथी दूर होकर दुत्कार लगाए,
जानते हुए भी पूछे मेरा हाल है,
मुफलिसी भी कमाल है,

एतबार करने वाले दगा देते है,
बाते करते है पीछे,देख भगा देते है,
देखकर कहते है क्यों हम भटेहाल है,
मुफलिसी भी कमाल है,

मदद पूछते है तो वो भिखारी समझते है,
एक परिवार कहते थे जो, अब पराया कहते है,
शुक्र है अपना परिवार नहीं कहता की आप कंगाल है,
मुफलिसी भी कमाल है,

खामख्याली से जागा हूँ, संभल गया हूँ,
बिखरने से पहले ही मैं सिमट गया हूँ,
असली-नकली की पहचान करा दी, ये धमाल है,
मुफलिसी भी कमाल है।

- अमित शुक्ल

2 comments:

  1. मुन्नवर राना साहव का एक शेर याद आया आपकी इस कविता पर

    ऐ गरीबी, देख रस्ते में हमें मत छोड़ना
    ऐ अमीरी, दूर रह नापाक हो जाएँगे हम ॥

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