Monday 2 March 2015

अँधेरा छंट जायेगा

अपने मित्र निशांत यादव के ब्लॉग से साभार

रुको !  डरते क्यों हूँ इस अँधेरे से
ये तो छंट  जायेगा
नयी सुबह का हिम्मत से इंतजार करो
अंतर्मन के अँधेरे से लड़ो
देखो हर तरफ उजाला है
रात का अँधेरा तो क्षणिक है
हर रात के बाद नयी सुबह जो है
चमकते जुगनुओं को देखो
दिन के उजाले को समेटकर
अँधेरे को आइना दिखाता है वो
अँधेरे और उजाले का सफर अनवरत है
उत्साह के बाद निराशा का होना सार्थक है
जैसे असफलता के बाद सफलता का होना
ये लड़ाई अनवरत है !
कृत्रिम और मन के अंधरे से !!!

-निशांत यादव

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