Saturday 28 February 2015

डूबता हुआ सूरज

डूबते हुए सूरज को कोई सलाम नहीं करता, हर किसी को लगता है की उगते सूरज में ही सारी ऊर्जा होती है। कोई अर्ध्य देता है, कोई मंत्र पढता है, कोई उसको सर आँखों पर बिठाता है। कोई उसकी रौशनी में अपने आँखों को डालकर उसकी रौशनी को अपने अंदर समेट लेना चाहता है।

मगर क्या डूबता हुआ सूरज वाकई में किसी काम का नहीं? शायद जिन्हें उठने का शौख है वो ये भूल जाते है की उगती हुई हर चीज़ का एक दिन अंत भी होता है। जो आज शिखर पर है वो कभी फर्श पर भी आएगा। शायद ये समझना ज़रूरी है की सूरज अगर डूबेगा नहीं तो समय की प्रक्रिया आगे कैसे बढ़ेगी। बिना सूरज के अस्त हुए रात नहीं आ सकती और बिना उसके आए वो सूरज जो कल डूब रहा था आज फिर से उग चुका है, उजाला करने के लिए, ज़िन्दगी देने के लिए।

ज़्यादा दूर नहीं जाता, बात साल १९९६ की है। सदी के महानायक पद्मविभूषण श्री अमिताभ बच्चन जी को एक आर्थिक समस्या हुई। ये वही था जो एक समय पर भारतीय सिनेमा का चमकता हुआ सूरज था। फिर वो वाक़या हुआ, और ये सूरज डूब गया। लोगों ने इस सूरज को अन्धकार में धकेल दिया और सोचा की अब ये सूरज कभी नहीं उगेगा मगर सूरज का तो नियम यही है। उगना, रौशनी देना, अस्त होना, रात को मौका देना और फिर आकर अपनी आभा को बिखेरना।

आखिरकार हम ये क्यों नहीं समझते की सूरज का काम ही यही है की वो अपने साथ साथ बाकियों को बजी चमकने का मौका देता है। देखिए ना, सूरज के होते हुए भी तारे टिमटिमाते है, आपके लिए शायद नहीं, मगर हक़ीक़त में वो होते है। वो खुद को अस्त करता है ताकि चाँद चमक सके, तारों की रौशनी लोगों को दिख सके। फिर भी डूबते हुए सूरज से इतनी बेरुखी क्यों?

डूबता हुआ सूरज किसी को पसंद नहीं

डूबता हुआ सूरज किसी को पसंद नहीं,
गिरता हुआ पत्थर किसी को पसंद नहीं,
वो गिर या डूब कर भी आपको निखारता है,
फिर हमको गिरने वालों की कद्र क्यों नहीं?

हारकर ही जीत सकते हो तुम ये जान लो,
फर्श से ही अर्श की है सीढ़ी ये पहचान लो,
अपनी नाकामियों से हमको प्यार क्यों नहीं?
डूबता हुआ सूरज किसी को पसंद नहीं,

गिरते हुए पत्थर को पत्थर नहीं देता सहारा,
परेशान इंसान को इंसान से नहीं मिलता सहारा,
गिरे हुए को उठाने की शक्ति का एहसास क्यों नहीं?
डूबता हुआ सूरज किसी को पसंद नहीं,

जिसने गिरे को उठाया, वो महान है,
बुरे-अच्छे वक़्त की उसको पहचान है,
इस मर्म का हमको भी एहसास क्यों नहीं?
डूबता हुआ सूरज किसी को पसंद नहीं,

जान लीजिए की ज़िन्दगी का यही काम है,
गिर कर चढ़ना, चढ़ कर गिरना दिलाता मुकाम है,
ये आसान सी बात समझना मुश्किल तो नहीं?
डूबता हुआ सूरज किसी को पसंद नहीं।
                                                                   -शुक्ल

3 comments:

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    1. में अशोक चक्रधर जी के पिता जी की लिखी हुई कुछ पक्तियां यहाँ कहूँगा , और उन्हीमें इन सब सवालो का जवाव है

      संघर्ष पथ पर चल दिया
      फिर सोच और विचार क्या
      जो भी मिले स्वीकार है
      यह जीत क्या वह हार क्या
      संसार है सागर अगर
      इस पार क्या उस पार क्या
      पानी जहाँ गहरा वहीँ
      गोता लगाना है मुझे
      तुम तीर को तरसा करो
      मेरे लिए मझधार क्या

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  2. Great post. Check my website on hindi stories at afsaana
    . Thanks!

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