Tuesday 3 March 2015

क्या बहरे हो रहे है हम?

बदलते वक़्त के साथ हमारी ज़रूरतों में भी बदलाव आया है। हम सब सिर्फ खुद पर ही ध्यान देते है। खुद के लिए सब कुछ चाहते है, मगर यदि हमें अपने लिए छोड़कर किसी और के लिए कुछ करने की इच्छा रखें तो क्या उसे धकियानूसी समझना चाहिए?

ये वही दुनिया है, वही लोग, मगर अब हमारी सोच सिर्फ खुद पर केंद्रित हो गई है। हम अपने लिए कोई भी कमी नहीं रखते, अपनों के लिए दुनिया से लड़ जाते है, मगर अगर कोई रास्ते में बेहोश मिले तो उसको मदद भी नहीं देना चाहते।

इतने व्यस्त हो गए है हम की जैसे ही हमें कोई आसपास नहीं दिखता, हम सब अपने कानो में एक यन्त्र ड़ाल लेते है जो हमें दुनिया से दूर कर देता है और हम बहरे हो जाते है।

सोचिए ज़रूर की ज़िन्दगी में इसी तरह से बहरे होकर जीना है या कुछ ऐसा करना है की जब आप ख़त्म हो, आपको ख़ुशी हो की आप बहरे नहीं थे। सोचिए।

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