Sunday 5 October 2014

यात्रा को अग्रसर

आज एक नई यात्रा पर अग्रसर हूँ। वो यात्रा जो की इस समय दिल्ली से बाहर की ओर जाती है। वो यात्रा जो कहीं ना कहीं मेरे थिएटर के भविष्य को निर्धारित करती है। वो यात्रा जो मैंने आजतक नहीं की। मैं आज अपने अस्मिता थिएटर के साथियों के साथ नाटकों का मंचन करने के लिए आगे जा रहा हूँ। बहुत ही सुन्दर अनुभूति है। ऐसी जैसी दूसरी कोई और नहीं। ये कितना सुकून देने वाला है की आज मैंने पहली बार इतनी सारी छुट्टियों के लिए आवेदन किया था और वो सारी स्वीकार भी हो गई, और वो भी अपने सपने के लिए। वाह क्या पल है।

इस ख़ुशी के साथ भी की मैं शायद अपने दोस्तों से मिलूँगा। बहुत ही अच्छा महसूस हो रहा है।

बाकी की कहानी वहाँ पहुँच कर सुनाऊंगा।

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