Tuesday 30 September 2014

डॉ. हरिवंश राय बच्चन जी की एक कविता

आज डॉ. हरिवंश राय बच्चन जी की एक कविता पढ़ते पढ़ते मेरे आँखों में आंसूं आ गए. सच में ये कविता कितनी सत्य है, इसको पढ़कर ही पता चलता है. पढ़िए और आनंद पाइए:

अगर तुम्हारा मुकाबला
दीवार से है,
पहाड़ से है,
खाई-खंदक से,
झाड़-झंकाड़ से है
तो दो ही रास्ते हैं-
दीवार को गिराओ,
पहाड़ को काटो,
खाई-खंदक को पाटो,
झाड़-झंकाड़ को छांटो, दूर हटाओ
और एसा नहीं कर सकते-
सीमाएँ सब की हैं- 
तो उनकी तरफ पीठ करो, वापस आओ।
प्रगति एक ही राह से नहीं चलती है,
लौटने वालों के साथ भी रहती है।
तुम कदम बढाने वालों में हो
कलम चलाने वालो में नहीं
कि वहीं बैठ रहो
और गर्यवरोध पर लेख-पर-लेख
लिखते जाओ।

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