Wednesday 3 September 2014

अकेलापन.... कितना अच्छा? कितना बुरा?

ये सवाल मेरे मन में आज सुबह जब आया तो मैं ये सोचने लगा की वाकई में, अकेलापन.... कितना अच्छा? कितना बुरा? पहले पहल तो कुछ समझ ही नहीं आया, लगा जैसे मेरे दिमाग ने मुझे अकेला छोड़ दिया हो, फिर मैं सोचने लगा, की नहीं ये अकेलापन,हमेशा बुरा नहीं होता, बिलकुल नहीं. ये बिलकुल वैसे ही है, जैसे की किसी भी सिक्के का सिर्फ एक पहलू नहीं होता. अगर उसके एक तरफ हेड है तो दूसरी और टेल.

वैसे मैं जब ये सोच रहा था, तो ये भी सोचने लगा की आखिर एक सिक्के में ये ही दो साइड्स क्यों होते है? एक हेड, तो दूसरा टेल. ना जाने क्यों इसपर विचार करने का मन कर गया,थोड़ी देर के बाद एक अजीब सी सोच ने दस्तक दी, जैसे की मुझको जगाना चाहती हो, जैसे मुझसे कुछ कहना चाहती हो. पर क्या?

वो कहना चाहती थी, की हर इंसान की ज़िन्दगी के दो ही पहलू होते है,अच्छा या बुरा. हर चीज़ के दो पहलू होते है, अच्छे या बुरे, फिर यही ख्याल अकेलेपन के लिए भी आया, और मैं सोचने लगा, की अकेलापन बुरा होता है, ये तो सुना था, मगर अच्छा कैसे हो सकता है. सोचने लगा तो एक ख्याल आया, जिसने कहा की जैसे हर पहलू के दो रूप होते है, वैसे ही इसके भी दो ही है.

अकेलेपन में आप स्वयं से बातें कर सकते हो (शायद कई लोग इसको पागलपन समझे), खुद को बेहतर करने के बारे में सोच सकते हो, कैसे आजके दिन को बेहतर कर सकते हो, क्या पढ़ना चाहते हो, ये जानते हो, कहाँ क्या रखा है, इसकी खबर होती है. एक ज़िम्मेदारी का एहसास होता है, पता है की गर ये चीज़ नहीं की, तो क्या नुकसान हो सकता है.किस चीज़ की कमीं हो सकती है. खुद को सुपरचार्ज रखना पड़ता है.

मैं जानता हूँ की इसको पढ़ने वाले ज़्यादातर लोग इस बात से सहमत नहीं होंगे. उनके हिसाब से ये एक गलत धारणा है, मगर जैसा मैंने पहले कहा की हर बात के अपने मतलब, मायने और आईने होते है,जैसा मैंने पहले भी कहा है,

'हर बात को कहने के अपने मायने होते है, और उसको समझने के अपने आईने होते है'-शुक्ल

आप निर्णय लीजिये की अकेलापन.... कितना अच्छा? कितना बुरा?

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