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हैरान था आज ये देखकर की लोग किस तरह से भीड़ में घूम रहे है. एक मेट्रो आई, लोग चढ़ने को हुए, तो देखा की अंदर से एक सैलाब सा बाहर आ रहा है, और फिर बाहर से अंदर भी वही हाल. एक पल के लिए मैं भौचक्का सा सब कुछ देख रहा था, देख रहा था की लोग कैसे भीड़ में बाहर आते, और अंदर जाते, एक भीड़ का मजमा सा था, जैसे की मेट्रो स्टेशन नहीं कोई मेला हो, जहाँ पर लोग आते, और फिर अपने अपने पसंद के स्टाल (घर,बार, या कहीं अन्य) पर चले जाते.
देखकर हैरानी थी की लोग ऐसा कैसे कर सकते है? क्या उन्हें इस बात का एहसास था की वो भीड़ का हिस्सा बन गए है, न की अपनी अलग पहचान लिए हुए कोई इंसान. भीड़ में होना और खो जाना बहुत आसान है, मुश्किल है अलग होना.
सोचिए
हैरान था आज ये देखकर की लोग किस तरह से भीड़ में घूम रहे है. एक मेट्रो आई, लोग चढ़ने को हुए, तो देखा की अंदर से एक सैलाब सा बाहर आ रहा है, और फिर बाहर से अंदर भी वही हाल. एक पल के लिए मैं भौचक्का सा सब कुछ देख रहा था, देख रहा था की लोग कैसे भीड़ में बाहर आते, और अंदर जाते, एक भीड़ का मजमा सा था, जैसे की मेट्रो स्टेशन नहीं कोई मेला हो, जहाँ पर लोग आते, और फिर अपने अपने पसंद के स्टाल (घर,बार, या कहीं अन्य) पर चले जाते.
देखकर हैरानी थी की लोग ऐसा कैसे कर सकते है? क्या उन्हें इस बात का एहसास था की वो भीड़ का हिस्सा बन गए है, न की अपनी अलग पहचान लिए हुए कोई इंसान. भीड़ में होना और खो जाना बहुत आसान है, मुश्किल है अलग होना.
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