Wednesday 17 September 2014

बहुत रौशनी थी इस फिल्म में

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सर्वप्रथम तो मैं अपने उन सभी पाठको को धन्यवाद देना चाहूंगा जिन्होंने पिछले २ महीने में मेरा साथ दिया और मेरे अस्पष्ट विचाररूपी ब्लॉग को सराहा, उसको पढ़ा, अपनी भावनाओ को व्यक्त किया, और लगातार पढ़ते रहे. मेरे अनंत बार फेसबुक पर टैग करने पर भी उन्होंने कोई आनाकानी नहीं की, और सप्रेम उस टैग को स्वीकार किया.

पिछले कुछ समय से ये बात ज़हेन में आ रही थी की मैं सिर्फ हिंदी में ही ब्लॉग लिख रहा हूँ,जिसके कारण शायद वो साथी जो ब्लॉग को पढ़ना चाहते हो, मगर हिंदी नहीं जानते हो, ऐसा कर पाने में असमर्थ हो. इसलिए आज बड़ी ख़ुशी के साथ मैं ये कहना चाहता हूँ, की आज ब्लॉग के २ महीने पूरे करने की संध्या से ये ब्लॉग दोनों भाषाओ, हिंदी तथा अंग्रेजी में लिखा जाएगा, ताकि जगत भाषी भी इसको पढ़ सकें. आप सबके अपार स्नेह के लिए अनेक अनेक धन्यवाद.


चार्ली चैपलिन विश्व सिनेमा की एक बहुत बड़ी हस्ती है. उनके अभूतपूर्व योगदान और अभिनय को बयान कर पाना तो असंभव है, और उनके योगदान के बारे में कुछ कहना तो सूरज तो दिया दिखाने वाली बात होगी. ज़्यादातर लोग उनके क्लाउन वाले अंदाज़ को और छोटी मूछो के अवतार को जानते है, मगर उन्होंने सिर्फ मूक फिल्मों में ही नहीं, कई बोलने वाली फिल्में भी की है, जिनमे से एक है ये फिल्म 'लाइमलाइट'.

जब मैंने इस फिल्म के बारे में जाना तो ये लगा की ये भी एक मूक फिल्म होगी (यहाँ मैं ये साफ़ करता चलूँ, की उनकी कुछ बोलने वाली फिल्में भी अब तक मैं देख चूका हूँ), मगर हुआ इसके विपरीत. ये तो एक बोलने वाली फिल्म थी. एक ऐसी फिल्म जिसमे पहले पहल वो अपने फिल्म की अभिनेत्री को ज़िन्दगी की मायूसी से बाहर निकलने की प्रेरणा दे रहे है. जब उन्हें पता चलता है की वो लड़की मारना चाहती थी, तो वो उसको जीने की ताकत देते है, उसको प्रेरित करते है, इस फिल्म के एक सीन में वो कहते है की 'ज़िन्दगी बेहतर हो जाएगी अगर हम डरना छोड़ दे'. ये कितना प्रेरणादायक है, ये कितना अद्भुत है.

लगातार प्रेरणा के कारण, आख़िरकार वो लड़की अपने पैरो पर चलने लग जाती है. वो लड़की जो अब तक लकवे की शिकायत करती थी, जो डरती थी, और वो भी ऐसे वक़्त में जब कल्वरो का किरदार निभा रहे चार्ल्स जी निराश हो जाते है, उन्हें लगता है की अब जीवन का अंत हो गया है. उनकी कला का कोई सम्मान नहीं कर रहा है. फिर आता है वो समय जब वो अपनी अंतिम प्रस्तुति के लिए जाते है, और उसको करते हुए चोटिल हो जाते है, और अंत में उनकी मृत्यु हो जाती है.


ये फिल्म आपमें एक नयी ऊर्जा भर देता है, आपको प्रोत्साहित करता है, कुछ बेहतर करने के लिए. आपके अंदर एक नयी शक्ति आ जाती है, और अभिनय, अरे साहब उसके बारे में कहने के लिए मैं अभी बहुत छोटा हूँ, या यूँ कहूँ की अभी जन्मा भी नहीं हूँ. इतनी अद्भुत फिल्म बनाने के लिए चार्ल्स चैपलिन साहब को दंडवत प्रणाम.

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