Monday 1 September 2014

खुद को बेहतर कीजिए

जिसे देखो वो ये कहता है की ये ठीक नहीं करते, या इनकी गलती है. बताइए ना, अगर हम दूसरे की गलती ही जताते रहेंगे तो खुद तो ठीक कब करेंगे. मेरे कई साथी इस बात से शायद तार्रुफ़ ना रखें, मगर मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता. मैंने हमेशा से सही कहने का माद्दा रखा है, और ये मानता हूँ की मेरे पास एक 'रीढ़ की हड्डी' है, जिनके पास नहीं है, वो गलत मानेंगे.

देखिए ना, मेरे दो ब्लॉग्स पर इतना बवाला मचा की लोगों ने पेज व्यूज की लिमिट से ज़्यादा मेरे उन दो ब्लॉग्स को पढ़ा, कारण शायद ये था की मैंने जो कहा वो सच कहा और डंके की चोट पर कहा. लोगों को बुरा लगा, क्यूंकि वो खुद पर ऊँगली उठते नहीं देख सकते थे. उन्हें लगा की मैं गलत हूँ, और मुझे अपने आप को बेहतर करना चाहिए, बिलकुल करना चाहिए और मैं करूँगा भी, मगर क्या इसका मतलब ये हो जाता है की आप हमेशा से सही है?

हम हमेशा सामने वाले पर एक ऊँगली तान कर ये जताने की कोशिश करते हैं की वो गलत है, मगर ये भूल जाते है की तीन उंगलियां और एक अंगूठा, हमारी ओर ही होता है, जिसका मतलबा हुआ, की उस सामने वाले से ज़्यादा कहीं ना कहीं हमें ठीक होने की ज़रुरत होती है. मानता हूँ, की मैंने जब उनपर ऊँगली उठाई तो खुद पर भी तीन उठी, और मैंने खुद को बेहतर करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है, क्यूंकि मैं उनको नीचे लाकर बड़ा/बेहतर नहीं बन सकता, बल्कि उनसे बेहतर होकर ही मैं उनसे बड़ा हो सकता हूँ.

प्रयास जारी है, आगे समयइच्छा

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