Sunday 31 August 2014

बच्चों की दुनिया ही अलग होती है

कल शाम को ऑफिस से वापस आते ही एक मित्र ने एक चाय की दुकान पर निमंत्रण दिया. उनका आग्रह इतना प्रबल था की उसको ठुकरा पाना संभव ना था.सो मैं वहां पहुँचा,तो पहले चाय, फिर एक समोसा और फिर १०० ग्राम जलेबी. वाकई में अब इतना बहार के खाने की आदत तो रही नहीं, सो मैंने कोशिश की उनके आग्रह को नकारने की, मगर वो इतना प्रबल था साहब की ऐसी सम्भावनाएँ ही नहीं थी. मरता क्या ना करता,मैंने मजबूरी में उसको खाने की कोशिश की.

खैर कमाल की बात ये हुई की उसी वक़्त दो बच्चे आए, जिन्हे कुछ सामान लेना था, और उनकी बातें ऐसी थी की मैं दुनिया को भूलकर बस उनकी बातें सुनने लगा. एक कहता की भईया मुझे २ समोसे दे दो, तो दूसरा कहता की दो समोसे लेना या पैसे नहीं लाया, कुछ ठीक वैसे ही जैसे की चिढ़ाने के लिए कोई कहता है. मेरी हँसी छूट गई. फिर उनकी बातचीत स्कूल की पढाई के बढ़ते बोझ पर चली गई, फिर मम्मी-पापा की डॉट की ओर जो उनको कार्टून देखने से रोकती है, फिर खाने पर, उसके बाद आए अभिनेता और अभिनेत्रियाँ, और उनकी चर्चा करीब ३० मिनट चली, मैं जड़ सा उनको ही देखता रहा. वो बच्चे अपनी ज़िन्दगी के हर पहलू पर कितने सजग थे. अरे मैंने आपको ये तो बताया ही नहीं की वो आगे क्या बनने वाले है,इसके बारे में तो कुछ बताया ही नहीं. वो देश के अभिनेता या राजनेता बनना चाहते है, भला क्यों? क्यूंकि दोनों में मान सम्मान बहुत मिलता है, और कमाई भी.

देखिए ना बच्चों की बातचीत भी अजीब होती है, और उनकी दुनिया भी क्यूंकि वो ख्याली पुलाव बहुत बनाते है,उम्मीद है की वो बड़े होते-होते असल ज़िन्दगी से रूबरू होंगे और अपनी इन बातों पर हसेंगे.

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