Tuesday 29 July 2014

एक और छुट्टी का दिन, एक और ख़ुशी का दिन

एक और छुट्टी का दिन, एक और ख़ुशी का दिन. वाकई में एक नौकरीपेशा आदमी के लिए छुट्टी का दिन एक ऐसा तोहफा है जिसको शब्दों में नहीं बयान किया जा सकता और मेरे लिए भी आज का दिन कुछ ऐसा ही था, क्यूँकि ये इतवार के इलावा किसी और दिन आया था.

कल की शाम डॉ. संगीता गौड़ के 'सावन और तीज के गीत' समारोह के साथ समाप्त करने का आनंद मन में पहले से था, ऊपर से उनकी आवाज़ में इतनी शक्ति थी की खुद मेघा भी बरसने को मजबूर हो गए. खैर समारोह समाप्त हुआ और मैं अपने घर पहुँचा. बड़ी ख़ुशी के साथ स्वप्नलोक में गया क्यूँकि अगले दिन छुट्टी थी., मगर दिमाग में प्लान.

सुबह आँख खुलते ही प्लान दिमाग में आ गया. सो पहले पहल कमरे की सफाई की, ज़रूरी भी है, क्यूँकि हर दिन हम इतनी हड़बड़ी में साफ़ सफाई करते है और सिर्फ छुट्टी वाले दिन ही अच्छे से सफाई हो पाती है, सो आज वो दिन था. सुबह ८ बजे से पहले पहले ये काम ख़त्म कर चुका था. अब अगला मिशन था, क्लाइंट वर्क. क्या करूँ, क्लाइंट ने कल काम टाइम पे कम्पलीट नहीं किया था, तो आज उसका काम भी पूरा करना था, मगर अनदर ये भय भी था की कहीं इंटरनेट कैफ़े नहीं खुले तो? कहिर वहां पहुँचकर ये पता चला की वो आज खुले थे. सो मैंने झट से क्लाइंट का काम पूरा किया, पर उससे पहले सर के ब्लॉग पर कमेंट कर चुका था. अब क्लाइंट व्लाइंट बाद में, पहले सर है हमेशा.

घर आते ही प्लान पे लग गया, उठाया और पूरे किचन की अच्छी तरह से सफाई करी, करते करते देर शाम हो गयी,फिर सब्ज़ी ले आया और आटा भी, अब अगर शेफ बनना है तो पूरी तरह से बनू.

ये ब्लॉग लिखते तक खाना नहीं बनाया था, पर उम्मीद है की रोटियां टेढ़ी मेढ़ी ही बनेंगी. ज़रूरी था की मैं इस अनुभव को बाटूँ क्यूँकि शायद ये मुझे प्रेरित करेगा की मैं घर के खाने की आदत डालूँ, और अपनी बिगड़ती सेहत को ठीक करूँ.

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