Monday 28 July 2014

ऐसे लम्हे रोज़ रोज़ नहीं आते!

 
(साभार:अमिताभ जी का ब्लॉग)

यकीन मानिए जो मैं ब्लॉग के टाइटल में कहना चाहता हूँ वो बिलकुल सच है. ऐसे मौके और ऐसे लम्हे रोज़ रोज़ नहीं आते जब आपको श्री अमिताभ बच्चन जी से मिलने या उन्हें समक्ष सुनने का सौभाग्य प्राप्त हो, मगर मेरी ये यात्रा आज शुरू नहीं होती,ये शुरू होती है शनिवार की सुबह ११ बजे से.



(साभार:अमिताभ जी का ब्लॉग)

शनिवार को मुझे एक फ़ोन आया. फ़ोन करने वाली लेडी बहुत ही रेस्पेक्टेबल पर्सन है और मैं उनकी बहुत इज़्ज़त करता हूँ. उनसे बातचीत के दौरान पता चला की बच्चन साहब रविवार शाम को यूनीसेफ के एक कार्यक्रम में सम्मिलित होने के लिए दिल्ली आ रहे है! कानों पर यकीन ही नहीं हुआ और ख़ुशी के मारे जबान ने जवाब देना बंद कर दिया. चाँद सेकण्ड्स के बाद मुझे एक और खुशखबरी मिली की सर के इस इवेंट के लिए एक पास उपलब्ध है जो वो मुझे देना चाहती है. यकीन नहीं हुआ की क्या मैं इस लायक हूँ? फिर बेहद ख़ुशी के साथ मैंने उसे एक्सेप्ट करना चाहा. शाम को वो मुझे प्राप्त भी हो गया. इसके मिलने से पहले तक मैं भावनाओ के समुन्दर में गोते खा रहा था, की जब बच्चन सर मुझे मिलेंगे तो उनसे क्या बातें करूँगा, और हमारे बाकी के इएफ साथी भी होंगे. इन सभी सपनो के साथ मैं सोने गया.

मैं शायद इतना ज़्यादा खुश था, की सुबह ६ बजे ही उठ गया वरना नार्मल दिनों में ७ बजे से पहले बहुत कम ही मुमकिन होता है.सुबह से बस दिल में यही ख्याल था की मैं कितने बजे इस समारोह के लिए निकलूँगा. कैसे अपने प्रभु से मिलूंगा और तब क्या कहूँगा? बहुत घबराया भी था, क्यूंकि कुछ चीज़ें अपनी जगह पर नहीं थी, मगर समय के साथ चीज़ें तरतीब में आ गयी. आखिरकार शाम ४ बजे मैंने स्टेडियम की ओर प्रस्थान किया.

चूँकि मुझे जगह का पता नहीं था, तो मैंने आधे रास्ता बस से और बाकी का एक ३ व्हीलर से तय किया. वहां पहुँचा तो लोग कतार में एंट्री का इंतज़ार कर रहे थे. कड़े सुरक्षा चेक के बाद हमें अंदर जाने का मौका मिला. अंदर लोग अपनी जगह ले चुके थे, और कुछ अभी अंदर आ रहे थे. इनसब से बेखबर कुछ लोग अपनों की तसवीरें लेने में व्यस्त थे, कोई ग्रुप में, कोई स्मारक के बीच में और कोई अन्य तरीको से. कोई सीट पर बैठा बाते कर रहा था और मैं अपने इएफ साथियों को फ़ोन मिलकर ये जानना चाहता था की वो वहां पर है या नहीं, मगर नंबर पहुँच से बाहर आ रहा था. कोई बात नहीं, मैं वहां पर दिल्ली की इएफ का प्रतिनिधित्व कर रहा था.

(साभार:भारत स्वास्थ मंत्रालय,ट्विटर)
(साभार:भारत स्वास्थ मंत्रालय,ट्विटर)
(साभार:भारत स्वास्थ मंत्रालय,ट्विटर)
(साभार:भारत स्वास्थ मंत्रालय,ट्विटर)
(साभार:भारत स्वास्थ मंत्रालय,ट्विटर)
(साभार:भारत स्वास्थ मंत्रालय,ट्विटर)
(साभार:भारत स्वास्थ मंत्रालय,ट्विटर)

जैसे जैसे ६:३० का समय नज़दीक आया, मेरी धड़कने बढ़ने लगी. मेरी दाई ओर से सर ने प्रवेश के साथ ही सबको नमस्कार किया और फिर कार्यक्रम की शुरुआत हुई. पहले चार लोगों ने अंग्रेजी में बातें करी, यहाँ तक की हमारे स्वास्थय मंत्री ने भी, और सब ने इस मिशन में सर के जुड़ने के लिए उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट की. फिर सर को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया. बताने की ज़रुरत नहीं की उस समय स्टेडियम में कितना शोर था, और कितना अभिवादन करती हुई तालियां, लोग अपनी सीटों पर खड़े थे, महानायक का धन्यवाद करने के लिए. अब सर बोलने के लिए आए, और अब भी लोग खड़े थे और तालियाँ बजा रहे थे. सर ने सबको नमस्कार करके बैठने का इशारा किया,तब कहीं लोग सीटों पर बैठे, और बाकी वक्ताओं से अलग सर ने जान जान की भाषा हिंदी में बात कहना शुरू किया. इससे पहले लोग कह रहे थे,'पता नहीं ये सब अंग्रेजी में क्या बोल रहे, कुछ समझ में नहीं आता', पर जब सर बोल रहे थे तो पूरा स्टेडियम ध्यान से उन्हें सुन रहा था.

(साभार:अमिताभ जी का ब्लॉग)










सर ने बाबूजी की एक बात का ज़िक्र किया जिसमे उन्होंने कहा की बाबूजी कहते है की जब हवन का धुँआ उठता है तो राक्षस मर जाते है, जो उन्होंने पोलियो के राक्षस के सन्दर्भ में कहीं. उन्होंने हर उस इंसान का शुक्रिया अदा किया जिसने इस कार्य में मदद की. इसके बाद सर प्रेस मीटिंग में गए, जहाँ उन्होंने मीडिया वालो के सवालों का जवाब दिया. उसके बाद सर आराम से अपने फैंस से मिलने लगे, और मैं उनके बिल्कुल बगल में ही था, उन्हें सामने से निहार रहा था, उनकी अद्भुत आवाज़ में खोया हुआ था की तभी एक उग्र इंसान ने सर की सिक्योरिटी को तोडना चाहा और अंदर घुस गया. इसके बाद सर किसी से नहीं मिल सके. हालांकि जब सर वहाँ से अपनी गाडी की ओर जा रहे थे, तो मैंने 'हेलो सर' कहकर सम्बोधित किया और सर ने हाथ हिलाकर मेरी बात का अभिवादन भी किया. ऐसा लगा मैं शायद बेहोश ही हो जाऊँगा. मैं उन्हें बाहर भी देखने गया और उनके बेहद करीब भी था, मगर अब सर अपनी गाडी में बैठे और चले गए. सर सदा ही इतने शांत रहते है और उनके चेहरे की चमक ऐसी है की किसी को भी शांत कर दे. इतनी मनमोहक हँसी की जिसके सामने दुनिया की हर चीज़ मिथ्या है.

शब्द नहीं है की मैं कैसे आपकी प्रशंशा करूँ. नमन!

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