क्या वाकई में अपने लक्ष्य को पाना इतना मुश्किल है? क्या लक्ष्य सिर्फ कोरी किताब के कागज़ों में लिखी कुछ शब्दों की बनावट है, जो वाकई में कभी हासिल नहीं होते? वास्तव में ऐसा नहीं है. लक्ष्य वो है जो हमें रास्ता देते है, जो हमें रात और दिन अथक श्रम करने की प्रेरणा देते है, और हमें अपना सर्वस्व न्योछावर करने को प्रेरित करते है. मैं अगर अपनी ज़िन्दगी के लम्हे को ही बताऊँ तो वो भी कुछ ऐसा ही है. आप सबको याद तो होगा ही मेरा वो ब्लॉग जो मैंने थिएटर से जुडी अपनी यात्रा पर लिखा था. उस क्षण मैं अपने लक्ष्य की ओर बिलकुल प्रेरित था, पूरी तरह समर्पित, हर चीज़ को त्यागकर बस थिएटर को पाने की चाह रखता था, पर जैसे जैसे अन्य ज़िम्मेदारियों ने, यानी नौकरी की ज़िम्मेदारियों ने मुझपर अपना प्रभाव डाला, मैं उतना समय थिएटर और अभिनय को नहीं दे पाया. उसका खामियाज़ा भी मुझको ही हुआ, क्यूंकि जो मित्र लगातार और पूरा समय दे पा रहे थे, वे आगे बढे, और मैं पीछे रह गया.
यहाँ मैं कोई कुंठा व्यक्त नहीं कर रहा, कोई निराशा भी नहीं, या किसी व्यक्ति अथवा संस्था/ग्रुप पर कोई प्रश्न नहीं खड़े कर रहा. मैं तो यहाँ पर बस ये बताने की कोशिश कर रहा हूँ की जैसे हम अपने लक्ष्य को कम समय देना शुरू करते है या अपना ध्यान भटका लेते है, फिर चाहे वो अपने व्यसनों के कारण हो या ज़िम्मेदारियों के, हम अपने लक्ष्य से भटकते जाते है.
मैं आज की तारीख में बस ये सोचता हूँ की कोई ऐसा साधन हो सके ताकि मैं अपने व्यय तथा ज़िम्मेदारियों से जुड़ा धन अर्जित कर सकूँ तो शायद मैं इस नौकरी के झंझावात से सदा सदा के लिए मुक्त ही हो जाऊँ और थिएटर तथा अभिनय को और समय दे सकूँ और अपने लक्ष्य की ओर जा सकूँ.
आशा है आप सब भी अपने लक्ष्य को पाने का प्रयास करेंगे, न की सामने आई मुश्किलों के सामने घुटने टेक देंगे.
मुश्किल कितनी भी बड़ी हो, आपकी हिम्मत और जज़्बे के आगे कुछ नहीं
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