आज कल चीज़ों को बेचने का कुछ ऐसा चलन है की इंसान कुछ भी और कभी भी बेच सकता है. देखिये ना एक इंसान जो खुद कभी अभिनय नहीं कर सके वो 'बड़े आराम से' चोरों को भगा रहे है, मगर जहाँ तक मेरी नज़र जाती है वो तो एक बनियान का विज्ञापन कर रहे होते है, और इस शब्द के साथ साथ उस विज्ञापन का कोई मेल तो नहीं दिखता, मगर ये तो नया ज़माना है साहब, यहाँ कुछ भी और कैसे भी बेचा जा सकता है.
ये भी क्या कुछ कम थे साहब, एक एड में तो एक इंसान कच्छे में स्विमिंग पूल से गुज़र रहा है और वहाँ पर बैठी सारी लड़कियाँ अजीब सी आवाज़ें निकलने लगती है, और बर्फ पिघलने लगती है, लड़कियों को गर्मी महसूस होने लगती है, समझ नहीं आता की वो डिओ का एड है या किसी और चीज़ का. वैसे भी औरतों को कामोत्तेजना या कामोत्तेजक वस्तु के रूप में दिखाना क्या एक सही चीज़ है? आप आखिरकार उस विज्ञापन से दिखाना क्या चाहते है, ये तो स्पष्ट कीजिए.
इससे भी एक कदम आगे चलिए तो एक्स का एड देखिये, जहाँ पर आपने इधर डिओ लगाया, उधर लड़कियाँ आपपर टूटने लगती है,ये क्या मूर्खता है.
इतने नामी गिरामी इंसान होने के बावजूद ना जाने अक्षय कुमार जैसे लोगों को ऐसे उलटे सीधे एड्स करने की क्या ज़रुरत है, या फिर, सनी प्राजी को, या लेओन को. कुछ एड तो कच्छा प्रमोट करने के लिए भी ऐसी हरकते है जो समझ से परे है. डिओ हो या पेन, अगर सही मायनो में देखा जाए तो इन विज्ञापनों में सपनो को बेचा जाता है, फिर चाहे वो आपको एकदम से अमीर बनाने वाले नाटको के विज्ञापन ही क्यों ना हो. घरों के सपने बेचने हो, या अच्छे कपड़ो के, या कीटनाशक का विज्ञापन, हर तरफ सपनो को बेचा जाता है, और एक दर्शक वर्ग है जो इसको हकीकत से जोड़ देते है, हालाँकि कुछ विज्ञापन समझ में नहीं आते,जैसे वो जिनके वीडियो मैंने शेयर किए.
वैसे ये कहना गलत नहीं होगा की आजकल की पीढ़ी कुछ ऐसे ही एड्स में विश्वास करती है,उसको लगता है की ये हकीकत है. आजकल का ज़माना वैसे भी चीज़ों को महिमांडित करके पेश करने का है, फिर चाहे वो सुई हो या कार. तभी तो देखिये की घर के एड में बैंक की ई.एम.आई. का डर दिखाया जाता है, या फिर सपनो का घर,लम्हे या ऐसा ही कुछ दिखाकर इंसान को हमेशा डराया या लुभाया जाता है.
आशा है की विज्ञापन करने वाले और इनको बनाने वाले यथार्थ के धरातल पर विज्ञापन बनाएंगे, तो हम सब पर बड़ी मेहरबानी होगी.
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