Tuesday, 17 November 2015

क्यूँ पूजूँ भगवान को मैं?

ये मेरी लिखी हुई कविता है.
----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
पत्थर बनकर बैठ गए जो,
भगवान कहे जो जाते है,
इनमे ऐसी क्या बात है भला,
क्यूँ पूजूँ भगवान को मैं?
जिनके नाम पर होता धंधा,
अंधश्रद्धा से होता सब गन्दा,
उसने कब सुनी मेरी फरियादें,
क्यूँ पूजूँ भगवान को मैं?
जो बैठा कहीं है, या है ही नहीं,
जिसके नियम भी उसके नहीं है,
जिसके नाम पर कत्लेआम यही है,
क्यूँ पूजूँ भगवान को मैं?
जिसके नियम लिखे हुए है,
तोड़े और मरोड़े हुए है,
क्यों उसको भला मानू मैं,
क्यूँ पूजूँ भगवान को मैं?
जिसके नाम पर चढ़ता चढ़ावा,
ढोंग नाम पे जिसके रचा हुवा,
कारीगर अपने हिसाब बनाता,
क्यूँ पूजूँ भगवान को मैं?
मैं तो मानू उनको जिनका मैं अंश हूँ,
जिन्होंने लालन पालन किया और,
उनका प्यार हरपल पाता हूँ मैं,
क्यूँ पूजूँ भगवान को मैं?
जिनसे बड़ा कोई नही,
हर आशीर्वाद इनसे ही,
जब ब्रह्माण्ड में इनसे कोई बड़ा नहीं तो,
क्यूँ पूजूँ भगवान को मैं।

-अमित शुक्ल

No comments:

Post a Comment