अपने मित्र निशांत यादव के ब्लॉग से साभार।http://www.nishantyadav.in/2015/03/blog-post_11.html?m=1
श्री गोपाल दास नीरज के संग्रह " बादलो से सलाम लेता हूँ " से
जितना कम सामान रहेगा
उतना सफ़र आसान रहेगा
जितनी भारी गठरी होगी
उतना तू हैरान रहेगा
उससे मिलना नामुमक़िन है
जब तक ख़ुद का ध्यान रहेगा
हाथ मिलें और दिल न मिलें
ऐसे में नुक़सान रहेगा
जब तक मन्दिर और मस्जिद हैं
मुश्क़िल में इन्सान रहेगा
‘नीरज’ तो कल यहाँ न होगा
उसका गीत-विधान रहेगा
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