Tuesday 9 December 2014

फ़िज़ाओं में जवाब मिलेगा। ((बॉब डिलन के गीत ‘द आन्सर इज़ ब्लोइं इन द विंड’ से प्रेरित)

सूनी राहों पर कोई कब तक चले
इससे पहले वो इंसाँ कहलाए?
कितने सागर कोई फ़ाख़्ता उड़े
इससे पहले कि वो चैन पाए?
बारूद की बू फैली हर इक ओर
कैसे यारों अमन आने पाए?
हवाओं में यारों जवाब मिलेगा
फ़िज़ाओं में जवाब मिलेगा।
कितने बरस कोई पर्वत टिके
इससे पहले कि वो मिट जाए?
कितने युगों तक करें इंतज़ार
जब आज़ादरूहों की उठेगी फ़रियाद?
कब तक आख़िर कोई मुँह फेर कर
हक़ीक़त से दामन बचाए?
हवाओं में यारों जवाब मिलेगा
फ़िज़ाओं मे जवाब मिलेगा।
जंग के बादल हैं फैले हर सू
अँधेरों में ढका आसमान
और तबाही मची है घर घर में
आँखें अपनी खोलो ज़रा
औ’ कितनी और लाशों के अम्बार लगें
इससे पहले कि आप जान पाएँ?
हवाओं में यारों जवाब मिलेगा
फ़िज़ाओं में जवाब मिलेगा।

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