Tuesday 4 November 2014

हार से घबराना कैसा?

सही मायनो में हार से घबराना कैसा? हार तो एक तरह से इस बात का प्रतीक है की आप अभी भी म्हणत कर रहे है, प्रगति कर रहे है और उस ओर अग्रसर है. हाँ ये बात भी सही है की लोग इस कारण आपका उपहास भी बनाएँगे, क्यूंकि उनके लिए हार या पीछे आना मतलब आप गलत हो गए, मगर वो शायद स्वयं को आईने में देखना भूल जाते है. ऐसे समय में गुस्सा बहुत आता है, दिल करता है की सामने वाले को या तो अपशब्द सुनाए जाए, या कुछ अनर्थ कर दिया जाए, मगर असल नियम तो ये होना चाहिए की सामने वाले को बुरा कहने की बजाए, खुद को संभाला जाए, बेहतर किया जाए. डॉ. हरिवंश राय बच्चन जी की कविता, 'कोशिश करने वालो की' में इसपर बहुत ही सही तरह से प्रकाश डाला गया है, पढ़िए:

असफलता एक चुनौती है, स्वीकार करो
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम
संघर्ष का मैदान छोड़ मत भागो तुम
कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती

ज़रूरी ये भी है की हम अपने पथ की पहचान ज़रूर कर ले, क्यूंकि एक द्वंदात्मक दिमाग कभी भी सही निर्णय नहीं ले सकता, इसलिए ज़रूरी है की किसी भी कोशिश से पहले ये स्पष्ट कर लें की आप करना क्या चाहते है. डॉ. हरिवंश राय बच्चन जी की कविता, 'पथ की पहचान' में इसपर बहुत ही सही तरह से प्रकाश डाला गया है, पढ़िए:
पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले,
यह बुरा है या कि अच्छा, व्यर्थ दिन इस पर बिताना,
अब असंभव छोड़ यह पथ दूसरे पर पग बढ़ाना,
तू इसे अच्छा समझ, यात्रा सरल इससे बनेगी,
सोच मत केवल तुझे ही यह पड़ा मन में बिठाना,
हर सफल पंथी यही विश्वास ले इस पर बढ़ा है,
तू इसी पर आज अपने चित्त का अवधान कर ले।
पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले।

इसलिए सदैव तैयार रहे और हार को एक जीत के रूप में स्वीकार करके आगे बढ़े, क्यूंकि हार को जीत बनाना ही जीवन का लक्ष्य है.

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