Friday 24 October 2014

घर को अलविदा : पिता जी के नाम पत्र/ भगतसिंह

सन् 1923 में भगतसिंह, नेशनल कालेज, लाहौर के विद्यार्थी थे। जन-जागरण के लिए ड्रामा-क्लब में भी भाग लेते थे। क्रान्तिकारी अध्यापकों और साथियों से नाता जुड़ गया था। भारत को आजादी कैसे मिले, इस बारे में लम्बा-चौड़ा अध्ययन और बहसें जारी थीं।
घर में दादी जी ने अपने पोते की शादी की बात चलाई। उनके सामने अपना तर्क न चलते देख पिता जी के नाम यह पत्र लिख छोड़ा और कानपुर में गणेश शंकर विद्यार्थी के पास पहुँचकर ‘प्रताप’ में काम शुरू कर दिया। वहीं बी. के. दत्त, शिव वर्मा, विजयकुमार सिन्हा जैसे क्रान्तिकारी साथियों से मुलाकात हुई। उनका कानपुर पहुँचना क्रांति के रास्ते पर एक बड़ा कदम बना। पिता जी के नाम लिखा गया भगतसिंह का यह पत्र घर छोड़ने सम्बन्धी उनके विचारों को सामने लाता है।- सं.

पूज्य पिता जी,
नमस्ते।
मेरी जिन्दगी मकसदे आला1 यानी आज़ादी-ए-हिन्द के असूल2 के लिए वक्फ3 हो चुकी है। इसलिए मेरी जिन्दगी में आराम और दुनियावी खाहशात4 बायसे कशिश5 नहीं हैं।
आपको याद होगा कि जब मैं छोटा था, तो बापू जी ने मेरे यज्ञोपवीत के वक्त ऐलान किया था कि मुझे खिदमते वतन6 के लिए वक्फ कर दिया गया है। लिहाजा मैं उस वक्त की प्रतिज्ञा पूरी कर रहा हूँ।
उम्मीद है आप मुझे माफ फरमाएँगे।
आपका ताबेदार,
भगतसिंह

1. उच्च उद्देश्य
2. सिद्धान्त
3. दान
4. सांसारिक इच्छाएँ
5. आकर्षक
6. देश-सेवा

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