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सच में एक सर्कस के अंदर घूमते, चलते हुए हम सब खुद को कितने बड़े कलाकार और महारथी समझने लगते है. देखिए ना, हम खुद ही अपने शो के हिट स्टार होते है और हमें ये पता भी नहीं होता. एक ऐसा शो जिसको हम ही संचालित कर रहे होते है और खुद ही सारे किरदारों में से प्रमुख किरदार या यूँ कहूँ की अहम रोल कर रहे होते है, और हमें पता भी नहीं होता.
खैर इस बारे में सोचने का कारण, चार्ली चैपलिन जी की फिल्म 'द सर्कस' बनी, जिसको एकाएक देखने बैठा, और इतना अच्छा लगा की जिसको बयान करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं है. वाह, क्या अद्भुत काम था, कितनी ज़िंदादिली, क्या ताज़गी दे गयी वो फिल्म, वो चेहरे के हाव भाव, वो बात का तरीका. और अंत में सबको ख़ुशी देकर भी खुद वीरान सा. वाकई में एक क्लाउन का यहीं काम होता है.
सच में एक सर्कस के अंदर घूमते, चलते हुए हम सब खुद को कितने बड़े कलाकार और महारथी समझने लगते है. देखिए ना, हम खुद ही अपने शो के हिट स्टार होते है और हमें ये पता भी नहीं होता. एक ऐसा शो जिसको हम ही संचालित कर रहे होते है और खुद ही सारे किरदारों में से प्रमुख किरदार या यूँ कहूँ की अहम रोल कर रहे होते है, और हमें पता भी नहीं होता.
खैर इस बारे में सोचने का कारण, चार्ली चैपलिन जी की फिल्म 'द सर्कस' बनी, जिसको एकाएक देखने बैठा, और इतना अच्छा लगा की जिसको बयान करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं है. वाह, क्या अद्भुत काम था, कितनी ज़िंदादिली, क्या ताज़गी दे गयी वो फिल्म, वो चेहरे के हाव भाव, वो बात का तरीका. और अंत में सबको ख़ुशी देकर भी खुद वीरान सा. वाकई में एक क्लाउन का यहीं काम होता है.
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