Saturday 30 August 2014

इक दिन तो आँखें बंद होगी ही


इसमें भी भला कोई शक है, नहीं ना. एक दिन तो इन आँखों को दर्द से, देखने की शक्ति से और सारी समस्याओं से छुटकारा तो मिलेगा ही, और सिर्फ इसको ही क्यों, पूरे शरीर को मिलेगा साहब. वो दिन होगा जब ज़िन्दगी और मौत के बीच का फासला मिट जाएगा. जब ज़मीन पर चलने वाला कहीं और जाएगा, पर कहाँ? ये कोई नहीं जानता कोई भी नहीं, खुद मैं भी नहीं.

मगर इतना जानता हूँ की कुछ भी हो जाए मैं किसी भी कर्मकांड से दूर रहूँगा, हाँ मगर इस बात को पूरी शक्ति से कह सकूँ ऐसा नहीं है, क्यूंकि उस पल तो इस शरीर तक में जान ना होगी. इसपर किसी और का अधिकार होगा, उनका जो शायद मेरे उत्तराधिकारी होंगे. यहाँ पर मैं वाकई में डॉ हरिवंश राय बच्चन जी की वो पंक्ति जिसका सन्देश शायद ये है, दोहराना चाहूँगा,

'जो मेरे पुत्र है, मेरे उत्तराधिकारी नहीं होंगे,
जो मेरे उत्तराधिकारी होंगे,मेरे पुत्र होंगे'

वैसे भी मैंने हमेशा ही उसको जिसको तथाकथित अंधे भक्त या श्रद्धालु,'भगवान' कहते है नकारा है, तो मैं अपनी मौत तक भी उसको नकारूँगा. मैं चाहूँगा की मेरी मौत के समय मुझे गंगाजल ना पिलाया जाए, बल्कि वाकई में वो हो, जो डॉ हरिवंश राय बच्चन जी ने मधुशाला में कहा है:

मेरे अधरों पर हो अंतिम वस्तु न तुलसी-दल,प्याला,
मेरी जीव्हा पर हो अंतिम वस्तु न गंगाजल, हाला,
मेरे शव के पीछे चलने वालों, याद इसे रखना-
राम नाम है सत्य न कहना, कहना सच्ची मधुशाला।।८२।

मेरे शव पर वह रोये, हो जिसके आंसू में हाला
आह भरे वो, जो हो सुरिभत मदिरा पी कर मतवाला,
दे मुझको वो कांधा जिनके पग मद डगमग होते हों
और जलूं उस ठौर जहां पर कभी रही हो मधुशाला।।८३।

और चिता पर जाये उंढेला पत्र न घ्रित का, पर प्याला
कंठ बंधे अंगूर लता में मध्य न जल हो, पर हाला,
प्राण प्रिये यदि श्राध करो तुम मेरा तो ऐसे करना
पीने वालों को बुलवा कर खुलवा देना मधुशाला।।८४।

वास्तविकता में मैं नहीं चाहता की लोग मुझे जलाए और ये कहें की अंत समय पर मैंने उनकी रीतियों से जीवन अंत किया. इसलिए मुझे नहीं चाहिए तुलसी का दाल या गंगाजल, ना ही शमशान में जलना है मुझको मंज़ूर, मुझको फेक देना किसी नाले में और हाँ, ना तो मेरी अस्थिओं को गंगा में बहाना,बल्कि किसी नाले में ही प्रवाहित कर देना, या चाहो तो मेरा शरीर किसी जानवर को खाने के लिए दे देना, और हड्डियां चाहे नाले में फेक देना. मगर मुझे किसी भी धर्म-कर्म के आधार पर मत प्रवाहित करना या जलाना.

मेरी अंतिम इच्छा को क़ुबूल करना.

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