Thursday 31 July 2014

मरीज़ों की दुर्दशा देखिए

कल शाम 'अस्मिता वीकेंड ग्रुप' की प्रस्तुति देखने के बाद मैंने जैसे ही घर जाने की सोची, ये भूल गया की मैं एक ऐसे रुट की ओर जा रहा हूँ जहाँ से घर के लिए बस कम मिलती है. खैर किसी तरह मैं भारत के सबसे बड़े चिकित्सा स्थल एम्स पहुँच गया.










(तस्वीरें सांकेतिक तौर पर उस स्थिति को दर्शाने हेतु)

वहाँ पर कुछ चीज़ें देखकर हमें ऐसा लगा जैसे की मैं शमशान या अभी अभी किसी के देहावसान समारोह में आ गया हूँ. चूँकि रात के ११ बज चुके थे, सो ज़्यादातर लोग सोने की कोशिश कर रहे थे. वहाँ पर कोई मेट्रो स्टेशन के बाहर की सीढ़ियों पर, कोई बस स्टैंड पर, कोई बगल में बनी एक छोटी सी गली में सो रहा था. वहाँ पास ही एक सुलभ शौचालय है, जहाँ से भयानक बदबू आ रही थी, पर लोग उसके बाहर भी सो रहे थे. देखकर बहुत ही अजीब लगा क्यूँकि ये कोई जानवर नहीं थे, ये तो इंसान थे, हाड-माँस वाले इंसान, वो लोग जो अपनों का इलाज करवाने इस बड़े अस्पताल में आये थे. वहीँ पर जनसँख्या का बोर्ड भी लगातार बढ़ रहा था. पहले पहल लगा की शायद ये कोई मशीन से चलने वाली घडी है जो हर एक सेकंड में एक अंक आगे बढ़ रही है, मगर ऐसा नहीं था, नीचे लिखा वाक्य ये प्रमाणित करता था की वो जनसँख्या बताने वाली एक मशीन है, और उसपर मैंने अंक देखा १,२८७,६७९,२८६ (अनुमानित). देखकर दंग रह गया, और जहन में एक पंक्ति आई,

'वक़्त के साथ बदल गए है हालात कुछ ऐसे,
की इंसा ज़्यादा है, और धरा कम पड़ गयी है'

बहुत अच्छा लगा, मगर अगले ही पल सोचने लगा की जो लोग अपनों का इलाज करवाने वहां आए हुए है क्या उन्हें भी सुरक्षा और सुविधाओं का हक़ नहीं है? क्या वो यहाँ सिर्फ इसलिए है की एक बीमार इंसान को बचा सके, और अगर इस दौरान उनकी तबियत को कुछ हो जाए तो? क्या उन्हें इस बात का इनाम रास्तो पर सोने के लिए मजबूर होकर दिया जाता है और वहाँ के बेहताशा खर्चे को सहकर भी?

कमाल की बात है की जहाँ इतनी बड़ी ज़मीन है, वहीँ पर अगर मरीज़ों के संबंधियों के रहने का इंतज़ाम भी हो जाए तो कितना अच्छा हो. वहां पर मैंने कुछ औरतों/बच्चियों को भी देखा जो बेचारी बस स्टैंड पर सोने के लिए मजबूर थी, और उससे भी बड़ी समस्या है प्रसाधन की. पुरुष तो कहीं भी प्रसाधन कर सकते है, परन्तु स्त्रियों के लिए प्रसाधन का कोई इंतज़ाम क्यों नहीं?

अगर मरीज़ों के संबंधियों को सुविधाएं मिलेंगी तो शायद उन्हें भी अच्छा लगेगा और हमारे देश की छवि भी बेहतर होगी, वरना इस तरह तो हम उन्हें भी बीमार और कुंठित कर रहे है.

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