Friday 20 June 2014

बच्चों की नाटकशाला

कहते है बच्चे बेहद नटखट और कोमल होते है. वो वही सीखते है जो आप उनको सिखाना चाहते हैं, उनमें सीखने की एक लगन, एक जोश, एक ताज़गी होती है. वो ताज़गी, जिसकी अनुभूति आप करना चाहते है, जो आपको बेहद प्रसन्नचित करदे, जो आपके अधरों पर एक मुस्कराहट बिखेर दे. कुछ ऐसा ही था वो लम्हा जब अस्मिता थिएटर वीकेंड वर्कशॉप के बच्चो ने अपनी जबानो में लोग बाग़ की कई कहानियों का मंचन किया. वो मधुरता, वो हँसते,बोलते चेहरे, वो छोटे छोटे से पैर जो जब स्टेज पर पहुँचते तो हृदय को प्रफुल्लित कर देते. वो चेहरे पर बिना किसी शिकन के स्टेज पर आते और अपनी अपनी कहानियों का मंचन करते रहे. वो सादगी से 'सादिया' की कहानी हो, या फिर बैंक मैनेजर की, या फिर किसी और किरदार की, हर एक कहानी और किरदार करते हुए जो चमक उनके चेहरे पे थी उसका वर्णन करना मुश्किल है.

इतना ही नहीं, वो तो इससे भी आगे गए और उन्होंने 'अनसुनी' नाटक की कहानियों का भी मंचन किया जो की हम सब के लिए एक मिसाल ही थी, क्यूँकि वो ताज़गी जिसकी हम सब एक्टर्स को रखने की हिदायत दी जाती है, वो साफ़-साफ़ महसूस की जा सकती थी. वो एक खुशियों भरा माहौल, और हम सब महसूस कर रहे थे की जैसे हम मंत्रमुघ्ध हो गए थे उनकी सादगी पर. यकीन मानिए, उनकी तारीफ के लिए शब्द भी कम पढ़ गए है, इसलिए आपको छोड़े जाता हूँ उनकी प्यारी सी तस्वीरों के साथ ताकि आप ही उस अनुभव का आनंद ले सके. अंत में यही कहूँगा,'शाबाश बच्चो, आपने बहुत उम्दा किया'




























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