Thursday 6 August 2015

वक़्त रहता नहीं कहीं टिककर

जी हाँ, वक़्त कभी नहीं रुकता, कभी नहीं, पर क्यों? ये तो एक कमाल है, एक ऐसा कमाल जो आपके और मेरे समझ से परे है। इसमें इंसान की बुद्धि नहीं काम कर सकती। ये एक सतत नियम है, एक ऐसा नियम जो प्रकृति के वशीभूत है, जिसमे हम भज जुड़े हुए है और जिससे बहुत कुछ सीखने को मिलता है।


एक सीधा सा अनुभव ये है की कोई भी स्थिति, चाहे वो सुख हो या दुःख, ये दोनों ही क्षणभंगुर है, दोनों एक सामान है और जीवन लगातार आगे बढ़ने का नाम है, ठीक वैसे ही जैसे पद्मभूषण डॉ हरिवंशराय बच्चन जी ने अपनी कविता 'जीवन की आपाधापी में' में कहा है,

'अनवरत समय की चक्की चलती जाती है,
मैं जहां खडा था कल, उस थल पर आज नही,
कल इसी जगह पर पाना मुझको मुश्किल है,'

वाकई इस अनवरत चलने वाली चक्की में जो गुण है वो किसी और में नहीं, इसमें जो सीख है वो किसी और में नहीं, सीख कभी ना रुकने की, हर पल में इक सा रहने की, दुःख-सुख को एक सा समझने की, जीवन को जीने की। इस चक्की का कमाल ये है, की यहाँ से मिली सीख जीवन भर आपके स्वास्थय को बेहतर करती रहेगी, मगर फिर भी इंसान की फिदरत ऐसी है की वो एक जगह टिककर नहीं रहता, शायद इसको भी वक़्त कहते है, वैसे भी गुलज़ार साहब ने कहा ही है,

'वक़्त रहता नहीं कहीं टिककर, इसकी आदत भी आदमी सी है।'

-अमित शुक्ल

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