Monday 23 March 2015

एक दिन की देशभक्ति



एक दिन के लिए हम सब बहुत बड़े देशभक्त बन जाते है, सारी देशभक्ति उमड़ आती है फेसबुक, ट्विटर पर, क्योंकि आज २३ मार्च को देश के तीन स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शहीद भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव देश के लिए फाँसी के तख्तों पर झूल गए थे।

ज़ाहिर सी बात है की उनके अतुलनीय बलिदान के लिए शब्द कम है। उन्हें नमन करने के लिए भावनाएँ शिथिल, मगर आलम देखिए की लोग आज एक दिन उमड़ पड़ते है उनकी सांकेतिक मूर्तियों को फूल माला पहनाने, ओजस्वी गीत गाने, उन्हें नमन करने के लिए समाधि स्थल पर जाकर, या गाँव जाकर, और खुद को एक सच्चा देशभक्त कहलवाने के लिए।

आलम ये है की आज एक दिन सब उनकी तस्वीरें लेंगे, चारो तरफ डालेंगे, खुद को देशभक्त का तमगा दिलवाएंगे और अगले दिन? अगले दिन इन्ही मूर्तियों और पार्कों का स्वागत कर रहे होंगे कूड़े के ढेर, गन्दगी, प्रेम में डूबे जोड़े और पंछियों की बीट। शर्म आती है ये सोचकर की हम सब ऑनलाइन भक्त बनकर रह गए है। शुक्र है की आजादी के वक़्त सोशल मीडिया नहीं था वरना हमें आज़ादी भी शायद उसी पर मिल जाती।

अगर सच में देशभक्त हो तो उनकी सोच को आत्मसात करो, उनके आदर्शों को समझो, उनके सपने कैसे साकार हो सकते है, ये सोचो, ना की अपने भाषणों में कभी उन्हें पांडिचेरी की जेल में पहुँचा कर, उनकी समाधि स्थल जाकर, सोशल मीडिया पर प्रचार और प्रोपोगंडा कर के अपनी रोटियां सेको, या उनके गाँव जाकर रोकर खुद को देशभक्त साबित करो।

शर्मनाक ये है की हम भूल गए की २३ मार्च को सिर्फ इन तीन सपूतों का ही जीवनांत नहीं हुआ था, बल्कि एक बहुत ही अद्भुत लेखक और कवि अवतार सिंह संधु'पाश' का भी खून हुआ था खालिस्तानी आतंकवादियों के द्वारा।

दिखावो पर ना जाकर, आदर्शों पर जाए, अपनी अक्ल लगाए

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