भाग रहा है इंसा,
पैसा कमाने को,
सपने पाने को,
घरोंदा बनाने को,
पैसा कमाने को,
सपने पाने को,
घरोंदा बनाने को,
भाग रहा है इंसा,
भीड़ में खो जाने को,
पहचान बनाने को,
बुलंदियों को पाने को,
भाग रहा है इंसा,
धर्म में खो जाने को,
धर्म पे खून बहाने को,
खुद से दूर जाने को,
भाग रहा है इंसा,
खूबसूरत दिखने के लिए,
किसी पे मिटने के लिए,
कुछ करने की चाहत लिए,
भाग रहा है इंसा,
ये सोचकर की भागना,
और जागना ही ज़िन्दगी है,
मगर क्या ये ज़िन्दगी है?
शांति पाना ही ज़िन्दगी है,
खुद को समझना भी ज़िन्दगी है,
खुशियाँ बाटना भी ज़िन्दगी है,
फिर भी भाग रहा है इंसा,
इक दिन रुक जाती ये दौड़ भी,
ज़िन्दगी की ये हसीं मोड़ भी,
पर क्या हम खुद को समझ पाते यहाँ,
फिर भी भाग रहा है इंसा,
-अमित शुक्ल
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