Monday 24 November 2014

थोड़ी सफाई यहाँ भी कर दो

इससे पहले की तुम आज,
सफाई की शुरुआत कर दो,
गर मिले वक़्त जो तुमको तो,
थोड़ी सफाई यहाँ भी कर दो,

जिन कुरीतियों ने हमको जकड़े रखा,
जिस समाज ने जात-पात को पकडे रखा,
उस पुरानी धूल पर नयी सोच की सफाई कर दो,
थोड़ी सफाई यहाँ भी कर दो,

जो आज भी औरत को छेड़े,
उनको गाली दे,हाथ मरोड़े,
इस सोच को झाड़ कर नयी कर दो,
थोड़ी सफाई यहाँ भी कर दो,

जहाँ आज भी लगती हो दुल्हो की बोली,
दक्ष प्रथा पर दुल्हनो की जहाँ जली हो होली,
उस सोच पर आज तुम नयी सोच का पोछा कर दो,
थोड़ी सफाई यहाँ भी कर दो,

जहाँ आज भी इंसा-इंसा से जलता हो,
जहाँ धर्म के नाम पर उसका शोषण होता हो,
उस सोच पर एक नयी खुशबू का छिड़काव कर दो,
थोड़ी सफाई यहाँ भी कर दो,

सफाई सिर्फ गली-मोहल्ले की नहीं होना है ज़रूरी,
खुद की बुरी धारणाओं को मिटाना भी है ज़रूरी,
पहले अंदर, फिर बाहर की सफाई का एक प्रण कर दो,
थोड़ी सफाई यहाँ भी कर दो I

                                                                               -अमित शुक्ल

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