Wednesday 6 August 2014

क्या हम खुद से है सवाल करते?

शायद मेरा ये ब्लॉग आप सबको बहुत ही अजीब लगे, मगर सच्चाई ये है की हम में से ज़्यादातर लोग इस बात को नहीं समझते है की खुद से सवाल करने से जवाब मिलते है और दूसरों से सवाल/जवाब.

कितना अटपटा लग रहा है ये सुनना सवाल/जवाब, भला ये भी मुमकिन कैसे? चलिए इसपर भी बात करते है. जब आप खुद से सवाल करते है, तो आप खुद ही सवाल बना रहे होते है, और साथ ही उनके जवाब भी. अमूमन हम वही जवाब पसंद करते है जो हमारी सोच से मेल खाए, या हमारी इच्छा से, मगर असल में सवाल का अर्थ ये नहीं होता? खुद से सवाल कीजिए, ज़रूर कीजिए, मगर अपनी पसंद के जवाब के लिए नहीं, बल्कि उस जवाब के लिए जो की आपको सही दिशा में ले जा सके. लेकिन क्यूंकि हमें अपने से ज़्यादा समझदार सामनेवाला लगता है, और हो भी क्यों ना? हमें हमेशा ऐसा लगता है की हमारी समस्याओं का हल सामने वाले के पास ज़रूर होगा,जैसे उसके पास किसी पोटली में हमारे जवाब छुपे हुए है? जैसे उसके पास अपनी कोई समस्या नहीं, या कभी हो ही नहीं सकती? क्या विडंबना है कि हमारे दिमाग को सामने वाले के पास सारे जवाब मिलने कि उम्मीद होती है और खुद से ना तो ठीक से सवाल होता है, ना जवाब.

शायद यही कारण है कि ढोंग का बाजार इतना बड़ा है और इतनी पैठ के साथ भारत में रचा बसा है, शायद तभी एक साधारण सा इंसान किसी को हरी चटनी के साथ समोसा खाने के लिए कह सकता है और लोग भी ऐसे जो कि उसकी हर बात को मानते चले जाए. तभी एक इंसान आशाओ का राम बना फिरे और लोगों से पैसा ऐठे, और फिर महिला भक्तों के साथ विकृति पूर्ण घटनाऍ करे और लोग फिर भी उसको सही माने. शायद तभी एक इंसान स्वयं को सत्य साईं बता कर लोगों से पैसे ठगे और सोचे कि नहीं मैं तो ऐसा कर सकता हूँ, आखिर मैं तो बाबा हूँ, और पकडे जाने पर कहे कि ये तो भक्तों ने दिए है उनकी सेवा फिर से करने के लिए.

कितनी बड़ी विडम्बना है कि हम सब दूसरो से जवाब चाहते है, और ये भूल जाते है कि हमारे पास भी एक दिमाग है जो कि सोच सकता है, कुछ अच्छा कर सकता है. मैं इसको ढोंग यूँ ही नहीं कह रहा था. देखिए ना ढोंगी ऐरोप्लॅन्स में घूमते है,अच्छे होटल्स या लक्ज़री कुटियाओं में रहते है, और वही उनके 'तथाकथित अंध भक्त' उनके 'तथाकथित सत्संग' को सुनने के लिए धक्के खाते है, और लंगर के लिए लड़ जाते है.

जिसके नाम पर वो ऐसा करते है उसको किसी ने कभी नहीं देखा, फिर भी रोज़ उसकी आरती उतारी जाती है और ना जाने कौन कौन से स्वांग किए जाते है. रास्ते में प्यासा रह जाए, कोई बात नहीं, मगर पत्थरों पर पानी, और दूध और ना जाने क्या-क्या उड़ेला जाता है ताकि उनके सवालों के जवाब मिल सके.

सोचो यार, अगर तुम अंदर से इतने खोखले हो तो खुद से सवाल क्या करोगे? जाहिर सी बात है तुम अपने सवालों के जवाब बाहर ही ढूँढोगे, और वो भी उनसे जो खुद कई चीज़ों और खासतौर पर तुम्हारे सवालों के बारे में नहीं जानते.

बेहतर होगा कि आप खुद से सवाल करें, दूसरों से नहीं

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