बताइए साहब, अपनी भावनाएँ लिखना भी क्या कोई गुनाह है? मैंने पिछले दो ब्लॉगों में अपनी भावनाएं व्यक्त क्या करी की लोगों ने इक बवाल सा मचा दिया है. कोई मुझे बुरा भला कहने के लिए कमेंट्स का सहारा ले रहा है, कोई मेरी भावनाओ पर ही सवाल उठा रहा है, और हो भी क्यों ना साहब, ये सब कुछ उनकी इच्छाओं के विपरीत है, और अगर मैंने ऐसा लिखा तो क्या गलत लिखा. जो मैंने महसूस किया वो लिखा.
यदि आपको मेरे ब्लॉग से नफरत है तो पढ़ना बंद कर दीजिए, मैंने तो आपको अपने ब्लॉग पर आने का न्योता नहीं दिया था. ये तो आपको तय करना है की आपको सिर्फ वो सुनना है जो की आपको ठीक लगता है, या की वो जो की वास्तविकता है.
निर्णय आपको करना है, मुझे नहीं
यदि आपको मेरे ब्लॉग से नफरत है तो पढ़ना बंद कर दीजिए, मैंने तो आपको अपने ब्लॉग पर आने का न्योता नहीं दिया था. ये तो आपको तय करना है की आपको सिर्फ वो सुनना है जो की आपको ठीक लगता है, या की वो जो की वास्तविकता है.
निर्णय आपको करना है, मुझे नहीं
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