Tuesday 12 August 2014

यहाँ समय बहुत ही कम है

ब्लॉग शुरू करने से पहले बच्चन साहब की अग्निपथ का वो डायलाग याद आ गया है:

'कहने को ये जीवन है, सिर्फ कहने को, मगर इधर वक़्त का कानून चलता है मालूम, वक़्त का.'

सच में यहाँ पर वक़्त का ही हुकुम चलता है, इंसान यहाँ आता तो अपनी मर्ज़ी से है, वैसे ये भी कहना गलत ही है, क्यूंकि इंसान यहाँ पर वक़्त की मर्ज़ी से आता है, और उसकी ही मर्ज़ी से यहाँ से चला जाता है. कहाँ? इसका जवाब तो कोई नहीं जानता, पर हाँ लोग कहते है की कोई स्वर्ग और नर्क जैसी दुनिया है, जहाँ लोग चले जाते है और फिर कभी नहीं आते.

क्या मज़ाक है की लोग उस चीज़ के बारे में भी जानते है, जहाँ वो कभी खुद नहीं गए, मगर इसमें भी कोई नई चीज़ नहीं, आखिरकार हम जिस देश-दुनिया में रहते है वहां ख़बरों से ज़्यादा अफवाएं पनपती है और ज़्यादा सच्ची मानी जाती है. देखिए ना एक इंसान आया, ख़ुशी हुई, ढोल बजे, कुछ वक़्त उसने लीला रची यहाँ पर, और फिर निकल लिया, किसी और यात्रा पर. कौन सी यात्रा? ये कोई नहीं जानता मगर लोग कहते है की हिंदुओ की बेहद प्रसिद्ध ग्रन्थ 'गीता' के मुताबिक इंसान एक चोला छोड़ता है, दूसरे में जाने के लिए.

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय, नवानि गृह्णाति नरो अपरानी|
तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही||

पर क्या वाकई ऐसा होता है? क्या हममे से कोई ये जानता है की कौन मरने के बाद कहाँ गया, या क्या किया? नहीं ना? मगर क्या करें साहब हम सब इन मिथको के साथ ही पैदा होते है और इनके ही साथ में निकल लेते है. देखिए ना, पिछले साल तक हम सब गिन्नी प्राजी के साथ हँस-बोल रहे थे, और एक दिन आया की वो निकल लिए. कहाँ? इसका तो जवाब दे पाना भी बहुत मुश्किल है, की कोई कहाँ निकल जाता है, मगर एक कमाल की चीज़ देखी मैंने, लोग हमेशा से अपने नाम के आगे स्वर्गीय ही लगवाना चाहते है, या यूँ कहूँ की उनके अपने हमेशा ही ये तमगा लगवाते है, जैसे की उन्हें पता है की मरने वाला कहाँ जाएगा, और अगर सब 'स्वर्ग' में ही जाएंगे तो 'नर्क' वालो का तो काम ही खत्म हो जाएगा.

यहाँ मुझे स्टीव जॉब्स की वो खूबसूरत लाइनें याद आती है की 'मृत्यु एक ऐसा गंतव्य है, जो हम सब बांटते है, मगर कोई भी वहाँ पहले नहीं जाना चाहता'. कितनी सच्ची है ये लाइन, कितने अर्थ छुपे है इसमें, और उससे भी अधिक ये लाइन,'आपका समय बहुत ही नियत है, इसे किसी और के तरह की ज़िन्दगी जीने में मत गुजारिए'


सच में कितनी बढ़िया बात कह गए स्टीव साहब, यहाँ समय बहुत ही कम है, इतना कम की आपको नहीं पता की अगले पल आप अपनी मंज़िल पर होंगे या चार कंधो पर, की आप जश्न मन रहे होंगे या आपके नाम का मातम हो रहा होगा, की आप किसी के साथ अच्छे पल बिता रहे होंगे, या आपके कान और नाक में रुई ठूसी जा रही होगी. सच में यहाँ समय बहुत ही कम है, इतना कम की अगले पल का पता नहीं होता और लोग ज़िन्दगी भर के कस्मे वादे कर बैठते है.

देखिए ना पिछले साल हम गिन्नी प्राजी के साथ हस बोल रहे थे, और आज उनकी तस्वीरों को देखकर ही ये सुकून कर लेते है की कोई कभी हमारे साथ था, जिसने हमें इतने मोमेंट्स दे दिए की हम ज़िन्दगी भर उन यादों के सहारे ही जी लेंगे. इस पल जगजीत जी के वो दो गीत याद आते है, जो मुझे कहीं ना कहीं रुला देते है, क्यूंकि मैंने पहली बार किसी के मृत शरीर को मोर्ग से शमशान तक पहुँचाया था, किसी का शरीर जलते हुए देखा था, किसी ने मेरी ज़िन्दगी में मेरे साथ होकर इतना बड़ा असर डाला था की मेरे पास उसको बयान करने के लिए शब्द नहीं है. हाँ,तो मैं गीतों की बात कर रहा था, वो गीत है,

चिट्ठी ना कोई सन्देश, जाने वो कौन सा देश जहाँ तुम चले गए


और दूसरा

जाते जाते वो मुझे अच्छी निशानी दे गया, उम्र भर दोहराऊँगा, ऐसी निशानी दे गया


अंत में यहीं कहूँगा दोस्तों की अपनी ज़िन्दगी को जितना ज़्यादा और जल्दी जी लो, वही अच्छा, क्यूंकि अगला पल है या नहीं ये आप नहीं जानते.

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