Monday 11 August 2014

आखिर उसका गुनाह क्या था?

बलात्कार? चीत्कार, अपहरण, और न जाने क्या? हर दिन एक लड़की को ये सहना पड़ता है? गर इस चरम तक नहीं तो घूरना, फब्तियां कस्ना और घटिया से इशारे, ये तो एक आम बात है. अखबार उठाइए और कोई भी पन्ना खोल लीजिये, एक बिज़नेस और स्पोर्ट्स को छोड़ कर, हर पन्ने पर या तो किसी लड़की के बलात्कार या छेड़ने की घटना बेहद आम सी बात है. लड़को को ये लगता है की इसमें हर्ज़ ही क्या है? आखिर उनके पास हुस्न है तो हमारे पास उसको आदमीरे करने का ये तरीका? पर क्या वाकई?

क्या वाकई में ये एक सभ्य समाज की तक़रीर है,जहाँ पर एक लड़की अगर शार्ट ड्रेस पहन ले तो उसको ओवर एक्सपोज़र वाली या टेम्पटेड कहा जाता है, वहीँ अगर लड़का पहन ले तो कोई सवाल नहीं? ये कैसे मापदंड है? अगर एक लड़की किसी लड़के का ऑफर ठुकरा दे तो उसको या तो मार दिया जाता है या उसपर एसिड फेक कर अपनी मर्दानगी साबित की जाती है? ये कैसा समाज है, जहाँ पर एक २ साल का बच्चा भी माँ और बहन की गालियां देता है और हम खुद को चाँद तारों पर ले जाने की बात करते है. क्या एक औरत होना एक अभिशाप है इस देश में क्यूंकि लोग उसको एक भोग की वस्तु समझते है?

अभी कल ही लोगों ने रक्षाबंधन का पर्व मनाया है, अब इसके मुताबिक, हर इंसान अपनी ही बहन को बचाने का प्रण लेता है? और दूसरे की बहनो का क्या? कोई घर में दहेज़ के लिए,कोई जन्म लेने के लिए, कोई अपनी मर्ज़ी का करने के लिए, कोई लोगों की वहशीपन के लिए मार खा रही है, पिट रही है. ये कितना दुखद है की दूसरो को जन्म देने वाली, आज खुद के जीवन के लिए ही तड़प रही है.

कितना दुखद है की जिस समाज को उसका ऋणी होना चाहिए था, वही आज उसको कुचलने पर आमादा है. एक समाज जिसकी जनक वो है आज अपने ही अस्तित्व को तलाश रही है. औरत के कुछ खूबसूरत रिश्तों जैसे की माँ, बहन और बेटी के साथ कुछ अभद्र से शब्द जोड़कर ये समाज उन खूबसूरत से रिश्तों को कितना अपवित्र कर रहा है. आखिर क्यों उसको ही हर दिन हिंसा का शिकार होना पड़ रहा है, कभी जिस्मफरोशी के नाम पर, कभी तस्करी के नाम पर, कभी अपनी विकृत मानसिकता को दर्शाने को बेताब बैठे इंसानो के हाथों. कभी उसके शरीर, कभी आत्मा का सौदा होता है, कभी उसकी बोली लगाई जाती है, कभी उसको ज़बरदस्ती ही बदनाम किया जाता है.

क्या ये वही समाज है जिसकी कल्पना आज से ६७ साल पहले, देश के वीरों ने की थी, वो समाज जहाँ औरतों को उनका अधिकार नहीं मिलता, जहाँ वो अपने अधिकारों को लेकर सिसकती रहती है. आप में से कई बुद्धिजीवी और मॉडर्न लडकियां इस ब्लॉग से सहमत न हो, मगर कभी हक़ीक़त के आईने को देखिए. कई लोग ये कहते थे की १६ दिसंबर के दोषियों को सज़ा दे दो, ये अपराध कम हो जायेंगे? सवाल है क्या वाकई? जवाब है नहीं ऐसा नहीं होगा क्यूंकि ये सब एक मानसिकता का खेल है, वो मानसिकता जो की सड़ गयी है, जो की स्वयं को ही सही मानती है, और लड़की को गलत.

शायद ये वीडियो आपकी ग़लतफहमी को दूर कर सके. आजकल के लड़के और पुराने ज़माने के लोग ये मानते है की एक रेप की गयी लड़की से शादी नहीं की जा सकती.


ये कितना दुखद है की हमारे समाज में आज भी ऐसी सोच वाले लोग रहते है. मैं आशा करता हूँ की वो लोग जो लड़कियों को भोग या किसी अश्लील रूप में सोचते है, वो अपनी सोच को बेहतर कर लेंगे.

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