मैंने शायद उनकी पहली फिल्म दीवार देखी थी (शायद) या फिर डॉन, मगर वो जो भी थी, दिल में घर कर गयी थी. वो दिन है और आज का दिन है, ये प्यार, ये सम्मान, ये दिल्लगी कभी कम हुई ही नहीं. सच में कुछ चीज़ों और लोगों का नशा ऐसा होता है जो कभी कम ही नहीं होता, अब देखिये ना, बच्चन साहब ने शोले में माउथ ऑर्गन बजाय और मेरे बाबूजी के पास भी माउथ ऑर्गन था, सो मैंने बचपन में उसको खूब बजाया, और बाबूजी की शिक्षा के अंतर्गत, काफी सीखा,मगर समय के साथ बड़ा होता गया और ये अद्भुत कला मुझसे छूट गई.
आज भी प्रति दिन मैं बच्चन साहब से बहुत कुछ सीखता हूँ, जैसे की मुखौटे नहीं रखना. जिस विधा में वो है, वहां उन्हें हर इक कार्य में मुखौटे पहनने पड़ते है, मगर असल जीवन में ऐसा नहीं है. माँ-बाप की सेवा, लोगों से प्रेम, उनको आदर सम्मान देना, कम लेकिन खरा बोलना, और सबसे बड़ी रोजाना ब्लॉग लिखना, ये उनकी खूबियों में से कुछ है, जिनको मैं यहाँ इंकित कर रहा हूँ. बाकी को सीखने का और अपनी यात्रा पर चलने का प्रयास जारी है.
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