Sunday 12 January 2014

और यात्रा चलती रहती है...

क्या है ये यात्रा? कैसी है ये यात्रा? क्या इस यात्रा का कोई आधार है, या हम एक ऐसी यात्रा में है, जिसका अन्त हमारी यात्रा के अन्त के साथ ही होता है? शायद नहीं, या शायद हाँ, क्यूँकि हम खुद अपनी यात्रा पर होते है और उस यात्रा के हर पड़ाव को पार करते हुए अपने चरम पर जा पहुँचते है, जहाँ कोई हमें आग लगा कर अपनी यात्रा पर आगे बढ़ चलता है.

इस यात्रा पर हमारी शुरुआत हमारे जनक के कारण होती है. हम किसी और कि यात्रा के एक पड़ाव होते है, जहाँ हमारी यात्रा किसी और कि यात्रा में जुड़ जाती है, और हम किसी और कि यात्रा का भाग बन जाते है,कोई हमारी यात्रा में भागीदार बन जाता है,और पिता का स्थान प्राप्त करता है, कोई और सर्वोच्च स्थान प्राप्त करके माँ के रूप में हमारे साथ होता है.

हमारी यात्रा के अगले पड़ाव में हम रोते है जब हमें कुछ चाहिए होता है, जैसे माँ का स्पर्श, माँ का वो दुलार, अपनी खुराक या नींद। हमारी एक छोटी सी मुस्कराहट में माँ का सारा प्यार उमड़ आता था,पिता अपने सारे दर्द भूल जाते थे,हमारे अपने अपनी खुशियाँ हमारी हरकतो में ढूंढते थे, फिर चाहे वो अलग सी भाषा,"अले,अले,अले", "ओ मेरे राजा बउवा/बिटिया,को घुम्मी करने जाना है" में हमसे संवाद करने कि कोशिश करना हो, या अपने से ज़्यादा हमारी फिक्र। रात में जागना क्यूँकि हमें नींद नहीं आ रही, क्यूँकि हमने अपने जगे होने का संकेत रात में रोकर दे दिया हो एकाएक. या हमारा वो घुटनो के बल चलना,वो उठ कर चलने कि कोशिश करना!!!

ये एक ऐसी यात्रा है जिसका लेश मात्र भी हमें याद नहीं होता, मगर वही हमारी छोटी से छोटी बातें भी किसी के जीने का कारण बन जाती है और हम दोनों अपनी अपनी यात्राओं में आगे बढ़ जाते है.

अपनी यात्रा के अगले पड़ाव में हम स्कूल जाते है, हमारे इस अगले पड़ाव के लिए भी हमारे जनक कई मुश्किलो का सामना करते हुए भी हमें बेहतर से बेहतर शिक्षा प्रदान करने कि कोशिश करते है, मगर हम इन सब से बेखबर अपनी फरमाइशों का पिटारा उनके सामने खोल देते है और वो मुस्कुराते हुए अपनी मेहनत कि एक एक पाईं हमारे सपनो और इच्छाओ को पूरा करने में लगा देते है.

जैसे जैसे हम बड़े होते जाते है, हमारी फरमाईशों का पिटारा बढ़ता जाता है और हमें दुनिया कुछ ऐसी लगने लगती है:

स्कूल जाओ तो सन्देश,
घर आओ तो उपदेश,
बाहर के लोग करते है बातें,
और आपस में बढ़ने लगते है कलेश

फिर वो उम्र आती है जहाँ हम व्यस्क हो जाते है, हमें लगने लगता है कि " कर लो दुनिया मुट्ठी में" जैसे हमारे लिए ही कहा गया हो. हर तरफ हम खुद को राजा और लोगों को अपनी प्रजा समझने लगते है, और इस बीच हमारे दिल में अपनी रानी के ख्वाब भी पलने लगते है, हमें हर लड़की बहुत खूबसूरत लगती है, यूँ लगता है जैसे बस इस लड़की के लिए ही जिए,और इसके लिए ही मरे,फिर यही विचार किसी और के लिए भी महसूस होते है, और हम इस कश्मकश में होते है, कि किसके साथ जुड़े, किससे नाता तोड़े,और पढाई तो जैसे कही काफूर हो जाती है,इस पर एक बात याद आती है:

पहले के आशिक़ कहते थे: हमें तुमसे प्यार कितना, ये हम नहीं जानते,मगर जी नहीं सकता तुम्हारे बिना

आज का आशिक़ कहता है: हमें तुमसे प्यार कितना,लेट मी सी, मोर देन वीना बट slightly लेस देन जूली

या यूँ

ज़फर जी का शेर था: उमरेदराज़ मांग कर लाये थे चार दिन, दो आरज़ू में कट गए, दो इंतज़ार में

आज के डफ़र का शेर होता है: चार दिन कटते है यूँ अब इश्क़ के फ़साने में, दो उसे पटाने में और दो उसे भुलाने में

या यूँ

पहले के आशिक़ कहते थे: हमें तुमसे प्यार कितना, ये हम नहीं जानते,मगर जी नहीं सकता तुम्हारे बिना

आज का आशिक़ कहता है : हेल्लो, या फिर हाय,
                                          कुछ ऐसे शुरुआत हो जाए,
                                          डू यू मिस मी, विल यू किस मी, 
                                          पल में प्यार यूँ पंख फैलाये, 
                                          और जब एक दूसरे से बोर हो जाए,
                                          तो कारण प्रेमी ये बतलाये,
                                          कि यू आर वर्गो,आई एम स्कार्पियो,
                                          कुछ जम नहीं रहा, ओके गुड बाय

फिर अपनी यात्रा के अगले पड़ाव में हम उस दुनिया से रूबरू होते है जहाँ हमें रैट रेस का हिस्सा होना पड़ता है,जहाँ हर कदम पर हमें कई ऐसे निर्णय लेने पड़ते है,जिनसे हमारा भविष्य जुड़ा हुआ होता है,जैसे भविष्य के लिए सेविंग,जीवन बीमा पॉलिसियों में निवेश, मकान और गाडी खरीदना,और फिर हमारी मुलाक़ात होती है उस इंसान से जो हमारा हमसफ़र बन जाता है, जिसके साथ हम अपनी ज़िन्दगी कि शुरुआत करते है, एक ऐसी ज़िन्दगी कि, जो आज तक हमारे माँ-पिता ने बिताई होती है, और फिर अपने बच्चों के जन्म के साथ हम भी उसी यात्रा का हिस्सा बन जाते है,जिसमे हमारे माता-पिता पहले ही सफ़र कर रहे होते है. अपने बच्चो के जन्म के साथ हम भी हर उस इच्छा,भावना से गुज़रते है, जो हमारे मम्मी-पापा हमारे जन्म और यात्रा के दौरान महसूस कर रहे होते है.

फिर इस यात्रा के अंतिम पड़ाव में हमारा पार्थिव शरीर लकड़ियों के बीच में होता है, लोग अपने एहसास व्यक्त कर रहे होते है, रोकर, ग़म मनाकर, और आपका ही अंश आपको मुखाग्नि देकर एक रीति का निर्वहन कर रहा होता है. लेकिन इस यात्रा का सबसे अहम पहलू ये है, कि चाहे हम चोला छोड़  चुके होते है, मगर लोग अपनी भूख एक दिन के लिए भी नहीं छोड़ पाते। आखिरकार हम अपने पिता का अंश होते है, और हमारे बच्चे हमारे,और हम अपने अंश को छोड़ कर चले जाते है,और एक दिन वो भी देहावसान को प्राप्त होते है.....

और यात्रा चलती रहती है...

Saturday 4 January 2014

सुनना सीखो


"सुनना सीखो" might seem like a pretty simple phrase but it has a huge impact. The words in English mean "Start Listening". There can never be a better word than this as this word has a huge importance in our lives.

We forget the meaning of these great words. We listen thinking that we have heard it all, or know it all,but the reality is that we know least or almost nothing & still react/respond/reply to anything around us,but we should start following the principle of "सुनना सीखो". Our lives are based around this simple term as we tend to speak a lot, but listen less or almost nothing. In a world where there are multiple altitudes to every word,statement or news coming out we really need to understand & think again about what we say, but before that we need to focus more on listening,a.k.a.,"सुनना सीखो"

This principle applies to every area of our life. The principle is plain & simple,"Listen",but it also has a hidden word in it meaning,"Be Active",because unless we are fully dedicated & active wherever we are, we can never give better results & we will continue to give answers basis whatever our subconscious or conscious mind will perceive out of whatever is said to us & that is where the problem lies. We live in a world that has immense possibilities and immense words are said every second, so be careful & "सुनना सीखो"

In our personal life, we listen less, because we think we know everything that there is to know or understand, but actually, we know least of what we should know & it is important to constantly listen to people, more than blasting our opinions to all.

When you start listening,you start growing.



In our professional life, we listen less, thinking we know it all & want to be bossy, but it is better to start listening & be a better person as that is when our growth shall start.

Please take the message with you & start practicing the habit of
"सुनना सीखो"

This article is dedicated to Shri Arvind Gaur Ji, Director at Asmita Theatre Group